सीयूईटी से दाखिलों की अनिवार्यता से मौलिक अधिकारों का हनन, कुलपति के बयान का विरोध

सीयूईटी से दाखिलों की अनिवार्यता से मौलिक अधिकारों का हनन, कुलपति के बयान का विरोध

गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल के उस बयान पर एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस्ड इंस्टीट्यूट ने विरोध जताया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी ने 12वीं के अंकों की मेरिट के आधार पर दाखिलों से इन्कार कर दिया है। एसोसिएशन ने सीयूईटी से दाखिलों की अनिवार्यता को मौलिक अधिकारों का हनन बताया है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल ने कहा कि छात्रों को सीयूईटी की वजह से दाखिलों से वंचित नहीं किया जा सकता है। सीयूईटी के संबंध में 28 अगस्त को ही दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एलएलबी प्रवेश की एक अधिसूचना पर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई है।

शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
इसमें केंद्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल ने स्वीकार किया कि सीयूईटी सभी केंद्रीय विवि के लिए बाध्यता नहीं है। प्रवेश में विवि को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है। जनहित याचिका में कहा गया था कि सीयूईटी से एडमिशन की बाध्यता से संविधान के आर्टिकल 14 समानता के अधिकार एवं आर्टिकल 21 शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन होता है।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की स्वीकारोक्ति सिद्ध करती है कि विवि को प्रवेश के संबंध में स्वायत्तता है। सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय सीयूईटी से प्रवेश देने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 15 मार्च को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भी यूजीसी को पत्र भेजकर गढ़वाल समेत 10 केंद्रीय विवि को जागरूकता और साधनों के अभाव के कारण सीयूईटी की बाध्यता से मुक्त रखने के लिए कहा था। यूजीसी ने इस पर कोई कार्रवाई ही नहीं की।

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