नेपाल के रवैये से उत्तराखंड के गोर्खा समाज भी खफा

नेपाल के रवैये से उत्तराखंड के गोर्खा समाज भी खफा

कालापानी को लेकर नेपाल के रवैये से उत्तराखंड का गोर्खा समाज भी खफा है। गोर्खा समाज ने एक स्वर में कहा कि कालापानी हमेशा से ही भारत का हिस्सा है और इसे लेकर नेपाल की ओर किए जा रहे दावे बेबुनियाद हैं। यही नहीं, गोर्खा समाज ने नेपाल को बातचीत से अपनी गलतफहमी दूर करने की नसीहत तक दी।

दरअसल, भारत के नए राजनीतिक नक्शे में कालापानी और लिपुलेख को भारत का हिस्सा दर्शाए जाने पर नेपाल ने आपत्ति दर्ज की। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली के बयान के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया। जिस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री समेत प्रदेश के गोर्खा समाज ने भी हैरानी जताई है। नेपाल के साथ देश के रोटी-बेटी के संबंधों का हवाला देते हुए गोर्खा समाज ने इसे महज एक गलतफहमी करार दिया है।

बेवजह दिया जा रहा तूल

सुरेंद्र गुरुंग (प्रदेश सह संयोजक, भाजपा गोर्खा प्रकोष्ठ)  का कहना है कि कालापानी 203 वर्र्षों से भारत का हिस्सा है। भारत की ओर से यहां कोई कब्जा नहीं किया गया है। मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है। नेपाल को संयम से काम लेना चाहिए और द्विपक्षीय वार्ता से इसे सुलझाना चाहिए। कुछ असामाजिक तत्वों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। उम्मीद है जल्द नेपाल जल्द विवाद को समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाएगा।

कालापानी को लेकर कोई विवाद नहीं

टीडी भोटिया (अध्यक्ष, गोर्खा कल्याण परिषद) का कहना है कि नेपाल हमारा मित्र राष्ट्र है। दोनों देशों के बीच कोई विवाद नहीं है। कालापानी भारत का ही हिस्सा है। नेपाल को गलतफहमी हो सकती है, जिसे भारत सरकार जल्द स्पष्ट कर देगी। उत्तराखंड के लोगों ने भी हमेशा नेपाल के लोगों को प्यार दिया है। सीमाओं को लेकर कभी कोई विवाद नहीं रहा है।

बातचीत ही है हर विवाद का समाधान

पदम सिंह थापा (अध्यक्ष, गोर्खाली सुधार सभा) का कहना है कि दोनों देशों के संबंध हमेशा अच्छे रहे हैं। नेपाल की ओर से कालापानी पर आ रहे बयान उचित नहीं हैं। नेपाल सरकार को यदि कोई संशय है तो दस्तावेजों की जांच कर स्थिति स्पष्ट की जा सकती है। दोनों देशों के संबंध परिवार जैसे हैं, हमारी संस्कृति भी एक जैसी है। यही भाईचारा बना रहना चाहिए।

कालापानी निसंदेह भारत का हिस्सा

संजय मल्ल (अध्यक्ष, गोर्खा इंटरनेशनल) का कहना है कि भारत और नेपाल सालों से घनिष्ट मित्र रहे हैं। भौगोलिक, राजनीतिक ही नहीं सांस्कृतिक रूप से दोनों के संबंध प्रगाढ़ रहे हैं। अब कालापानी विवाद से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, लेकिन नेपाल सरकार को इसे बेवजह तूल नहीं देना चाहिए। कालापानी निसंदेह भारत का हिस्सा है और नेपाल को इस पर समझदारी दिखानी चाहिए।

नेपाल के लोगों को उकसा रहा चीन 

सूर्य विक्रम शाही (राष्ट्रीय अध्यक्ष, गोर्खा डेमोक्रेटिक फ्रंट) का कहना है कि कालापानी क्षेत्र के नेपाली लोगों को चीन की ओर से उकसाया जा रहा है। इससे चीन भारत और नेपाल के संबंधों में दरार डालने का प्रयास कर रहा है। नेपाल के लोगों और सरकार को भी यह समझना होगा कि भारत के साथ उन्हें अपने संबंध बनाए रखने हैं। कोई विवाद है तो उसे बातचीत से सुलझाना होगा।

नेपाल की जनता से अपील

उत्तराखंड के गोर्खा समाज ने नेपाल की जनता से अपील की है कि वे किसी के बहकावे में न आएं और किसी प्रकार का भड़काऊ बयान न दें। भारत हमेशा नेपाल का हितैषी रहा है। जबकि चीन दोनों देशों में मतभेद पैदा करने का प्रयास करता रहा है।

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