अस्पताल में बेड की कमी के चलते स्ट्रेचर पर इलाज करवाने को मजबूर मरीज

अस्पताल में बेड की कमी के चलते स्ट्रेचर पर इलाज करवाने को मजबूर मरीज

देहरादून। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीज स्ट्रेचर पर इलाज करवाने को मजबूर हैं। पहले से ही बेड की कमी को जूझ रहा अस्पताल प्रबंधन इन दिनों निजी चिकित्सकों की हड़ताल की वजह से दोहरी मार झेल रहा है। ऐसे में इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को स्ट्रेचर पर इलाज करवाना पड़ रहा है।

हड़ताल से बढ़ा दबाव 

निजी चिकित्सकों की हड़ताल के चलते इन दिनों दून अस्पताल पर दबाव बढ़ गया है। आए दिन मरीजों को दून के आसपास के इलाकों से दून अस्पताल रेफर किया जा रहा है। जिससे सारे मरीज दून अस्पताल में इलाज के लिए आ रहे हैं। इमरजेंसी में करीब 30 प्रतिशत मरीज बढ़ गए हैं, जिससे मरीजों को बेड भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।

दून अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में 20 बेड उपलब्ध हैं, जो आवश्यकता के हिसाब से बढ़ाए जाते हैं। इसके बाद मरीजों को जनरल या फिर दूसरे वार्डों में जरूरत पड़ने पर शिफ्ट किया जाता है। इन दिनों वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर स्ट्रेचर भी लगाए गए हैं। इनको इमरजेंसी वार्ड के पीछे बरामदे में लगाकर इलाज किया जा रहा है।

कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि डोईवाला से लेकर सहसपुर से भी मरीज दून अस्पताल रेफर हो रहे हैं। ऐसे में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। हर प्रकार की परिस्थितियों से निपटने को तैयारी कर ली गई है। न केवल डॉक्टर व कर्मचारियों की छुट्टियों पर रोक लगा दी है, बल्कि वैकल्पिक इंतजाम भी किए जा रहे हैं।

28 तक बन जाएगी मेडिकल कालेज की ए-ब्लॉक ओपीडी

दून मेडिकल कालेज की निर्माणाधीन ओपीडी के ए-ब्लॉक का काम 28 फरवरी तक पूरा हो जाएगा। ओपीडी को आधुनिक तकनीक से बनाया जा रहा है, ताकि मरीजों को दून अस्पताल की तरह भटकना न पड़े। इसके साथ ही शेष बचा निर्माण कार्य भी तेजी से पूरा करने की तैयारी चल रही।

दून अस्पताल व नगर निगम के सामने दून मेडिकल कालेज की नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा है। महापौर सुनील उनियाल गामा बिल्डिंग के निरीक्षण को पहुंचे। गामा ने निर्माणाधीन ओपीडी व अन्य हिस्सों का निरीक्षण कर कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश निर्माण निगम के अधिकारियों के साथ बैठक की।

इस दौरान यूपी निर्माण निगम के महाप्रबंधक अरविंद तिवारी ने बताया कि 28 फरवरी तक ओपीडी के ए-ब्लॉक का काम पूरा हो जाएगा। तिवारी ने बताया कि वर्तमान में करीब 400 श्रमिक रात-दिन निर्माण कार्य पूरा करने में लगे हुए हैं। निर्माण निगम के अधिकारियों को 24 घंटे निर्माण कार्य की मॉनिटरिंग करने और उसकी रिपोर्ट निर्माण निगम मुख्यालय भेजने के निर्देश दिए हुए हैं।

महापौर ने भी निर्माण कार्य पर संतुष्टि जताई। उन्होंने निर्माण निगम अधिकारियों से गुणवत्ता का पूरा ख्याल रखने को भी कहा। बता दें कि, पिछले दिनों ओपीडी के निर्माणाधीन भवन के छज्जे का एक हिस्सा गिर गया था। प्रारंभिक जांच में पता चला था कि यह संभवत: किसी की शरारत थी और बल्लियां हिलाने की वजह से हादसा हुआ था।

निर्माण निगम के अधिकारियों ने घटना में एक पुराने ठेकेदार पर संदेह भी जताया था। उक्त ठेकेदार से देरी की वजह से निर्माण कार्य छीन लिया गया था और दूसरे ठेकेदार को सौंप दिया गया। निर्माण निगम की ओर से आरोपी पूर्व ठेकेदार को काली सूची में डाल दिया गया है।

मॉलीक्यूलर लैब पर अस्पताल प्रबंधन ने स्वास्थ्य विभाग को घेरा

श्री महंत इंदिरेश अस्पताल की मॉलीक्यूलर लैब की प्रमाणिकता को लेकर उठ रहे सवाल पर अस्पताल प्रबंधन ने सफाई दी है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनय राय ने अस्पताल में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि एनसीडीसी के नियमानुसार पांच से 10 सैंपल एनसीडीसी नई दिल्ली को क्रॉस वेरीफिकेशन के लिए भेजे जा रहे हैं। सैंपलों की अस्पताल की लैब व एनसीडीसी की लैब में होने वाली जांच में कोई भिन्नता नहीं है।

डॉ. विनय राय ने कहा कि केंद्र की तीन सदस्यीय टीम ने अस्पताल का निरीक्षण किया था। तब टीम ने कोई खामी इंगित नहीं की। अब स्वास्थ्य महानिदेशालय केंद्रीय टीम की रिपोर्ट का हवाला देकर यह कह रहा है कि अस्पताल की लैब से लेकर आइसीयू तक में खामियां हैं। पर स्वास्थ्य विभाग ने यह तक मुनासिब नहीं समझा कि इसकी जानकारी अस्पताल प्रशासन को दी जाए।

उन्होंने कहा कि अगर किसी भी स्तर पर दिक्कत है, तो क्या इन्हें दुरुस्त नहीं किया जाना चाहिए। विभाग ने किसी भी तरह की कार्रवाई के बजाए कथित रिपोर्ट मीडिया में रखना मुनासिब समझा। जो अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है। यह भी संभव है कि स्वाइन फ्लू के बढ़ते प्रकोप के बीच अधिकारी आंकड़ों की बाजीगरी करना चाहते हैं। उनकी मंशा है कि किसी तरह ज्यादा से ज्यादा रिपोर्ट गलत ठहराई जाएं।

कहा कि स्वाइन फ्लू के कारण हुई मरीजों की मौत का स्वास्थ्य विभाग द्वारा डेथ ऑडिट किया गया। इसके परिणामों में अस्पताल खरा उतरा। उन्होंने दावा किया कि एनसीडीसी की गाइडलाइन के अनुसार अस्पताल अस्पताल की लैब सभी अर्हताएं पूरी करती है। कहा कि यदि किसी मरीज के सैंपल की जांच रिपोर्ट में एनसीडीसी की लैब से भिन्नता पाई गई है तो उसको सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार मेहता ने कहा कि एमसीआइ की टीम लगातार अस्पताल की तमाम सुविधाओं व संसाधनों की परख करती आई है। इसने कभी भी ऐसी किसी कमी को इंगित नहीं किया है। इस दौरान अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जगदीश रावत, मॉलीक्यूलर लैब के इंचार्ज डॉ. नरोत्तम शर्मा आदि उपस्थित रहे।

दून अस्पताल में एंटी रैबीज वैक्सीन की दिक्कत दूर

दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एंटी रैबीज वैक्सीन (एआरवी) दी दिक्कत दूर हो गई है। अस्पताल प्रशासन ने एआरवी की 200 वाइल मंगवा ली है। इसके अलावा स्वास्थ्य महानिदेशालय से भी 50 वाइल देने का अनुरोध किया है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा का कहना है कि यह वैक्सीन करीब डेढ़ माह तक चल जाएगी। इसी बीच नए टेंडर की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाएगी।

बता दें, अस्पताल में एंटी रैबीज वैक्सीन खत्म हो गई थी। ऐसे में मरीज या तो बिना टीका लगाए लौट रहे थे या फिर बाहर से महंगे दाम पर वैक्सीन खरीदकर लगवा रहे हैं। अस्पताल में रोजाना 150 लोग एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने पहुंचते हैं। इसमें 30 से 40 मरीज रोजाना नए होते हैं।

कुत्ते के काटने पर घाव के अनुसार तीन से सात टीके लगाए जाते हैं। बाजार में इसकी कीमत 300 से 350 रुपये के बीच होने से गरीब इसे खरीद पाने में असमर्थ हैं।

शासन में अटकी 108 के संचालन की फाइल

उत्तराखंड में आपातकालीन सेवा 108 एंबुलेंस के संचालन की फाइल शासन में अटक गई है। इस सेवा का संचालन कर रही जीवीके ईएमआरआइ का अनुबंध सात मार्च को समाप्त हो रहा है। नया टेंडर कैंप (कम्युनिटी एक्शन थ्रू मोटिवेशनल प्रोग्राम) के नाम खुला है। पर इसे अब तक शासन की स्वीकृति नहीं मिली है।

बता दें, प्रदेश में वर्ष 2008 में 108 सेवा शुरू की गई थी। इसका संचालन तभी से जीवीके ईएमआरआइ कंपनी के पास है। कंपनी का अनुबंध पूर्व में ही खत्म हो चुका है और फिलहाल सात मार्च तक का एक्सटेंशन कंपनी को मिला हुआ है।

वर्तमान में 108 सेवा के तहत 139 एंबुलेंस का संचालन प्रदेशभर में किया जा रहा है। जनवरी में इसका टेंडर नई कंपनी के नाम पर खुल गया था। कंपनी प्रतिमाह 1.18 लाख रुपये प्रति एंबुलेंस पर सेवा का संचालन करेगी। पिछली बार की अपेक्षा स्वास्थ्य महकमे ने इस बार टेंडर में सर्विस की सख्त मॉनीटरिंग का प्रावधान किया हुआ है।

इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही सामने आने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान शामिल किया गया है। इसके लिए शहर व गांव के अलावा दूरस्थ क्षेत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जहां एंबुलेंस का रिस्पांस टाइम 20 से 30 मिनट रखा गया है। अगर एंबुलेंस इसमें टाइम लगाएगी तो उसे जुर्माना देना होगा।

दूसरा सेवा की गुणवत्ता के तहत फोन कॉल अटेंड नहीं होने व लोगों के साथ व्यवहार पर भी नजर रखी जाएगी। टेंडर संबंधी फाइल शासन में भेजी गई थी, पर अब तक स्वीकृति नहीं मिली है।

हांफ रही 108

108 एंबुलेंस को तेल नहीं मिलने एवं तकनीकी खामियों की वजह से यह सेवा हांफ रही है। इधर, कंपनी की ओर से जनवरी का वेतन कर्मचारियों को अब तक नहीं दिया गया है। इससे उनके सामने भी आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। 108 के स्टेट हेड मनीष टिंकू के अनुसार सरकार पर कुछ बकाया रहने की वजह से 30 से 35 प्रतिशत गाड़ियां नहीं चल पा रही हैं। हमारा करार खत्म होने की वजह से पेट्रोप पंप स्वामियों ने उधार ईंधन देने से इनकार कर दिया है।

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