Raipur Ancient and Historical Temple: रायपुर के प्राचीन मंदिर, यहां है ऐतिहासिक धरोहर और आस्था का अद्वितीय संगम…

Raipur Ancient and Historical Temple: रायपुर के प्राचीन मंदिर, यहां है ऐतिहासिक धरोहर और आस्था का अद्वितीय संगम…

Raipur Ancient and Historical Temple: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है. इन मंदिरों में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और यह छत्तीसगढ़ के धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं. आइये जानते है रायपुर के कुछ प्रसिद्द प्राचीन मंदिरों के बारे में….

1 – हटकेश्वर नाथ मंदिर, महादेव घाट

हटकेश्वर नाथ मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है जो न केवल छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण बन चुका है. यहां की शांतिपूर्ण वातावरण, खारुन नदी और झूला पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. हटकेश्वर नाथ मंदिर, रायपुर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह शहर की जीवनदायिनी मानी जाने वाली खारुन नदी के तट पर स्थित है. यह मंदिर छत्तीसगढ़ के प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में से एक है, जिसकी गहरी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता है.

नया आकर्षण – खारुन नदी पर झूला

दो साल पहले खारुन नदी के ऊपर एक सड़क रूपी झूला बनाया गया था, जो हरिद्वार के लक्ष्मण झूला की तर्ज पर तैयार किया गया है. यह झूला मंदिर के पास के क्षेत्र को एक नया आकर्षण प्रदान करता है. झूले की वजह से अब यहां पर्यटकों की संख्या कई गुणा बढ़ चुकी है.

मंदिर का इतिहास

मंदिर का निर्माण 1402 ई. में हुआ था, जब कल्चुरी राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के शासनकाल में हाजीराज नाइक द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और क्षेत्र के भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख पूजा स्थल है. हटकेश्वर नाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है, और यहां आने वाले श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने से उनके जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं.

कैसे पहुंचे

हटकेश्वर नाथ मंदिर रायपुर शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और खारुन नदी के तट पर स्थित है. रायपुर से यहां पहुंचने के लिए आप निजी वाहन, टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस का उपयोग कर सकते हैं. रायपुर रेलवे स्टेशन और स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा दोनों से मंदिर तक टैक्सी या ऑटो रिक्शा द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.

2 – दूधाधारी मठ

छत्तीसगढ़ में स्थित दूधाधारी मठ एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है, जो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, दूधाधारी मठ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह रायपुर और छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक भी है. यहां की वास्तुकला, धार्मिक महत्व और सामाजिक योगदान इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाते हैं.

इतिहास

दूधाधारी मठ की स्थापना 1554 में हुई थी. यह मठ महंत बलभद्र दास जी द्वारा स्थापित किया गया था, जो हनुमान जी के परम भक्त थे. स्वामी बलभद्र दास जी का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले के आनंदपुर में हुआ था. अपने जीवन के उत्तरार्ध में, वे छत्तीसगढ़ आए और रायपुर में बस गए. यहां उन्होंने मठ की स्थापना की, जो आज दूधाधारी मठ के नाम से प्रसिद्ध है. स्वामी बलभद्र दास जी ने जीवनभर केवल दूध का सेवन किया और हनुमान जी की पूजा की. इसी कारण उन्हें ‘दूधाधारी’ के नाम से जाना गया, और मठ का नाम भी ‘दूधाधारी मठ’ पड़ा. मठ की वास्तुकला उड़ीसा शैली से प्रभावित है, और इसकी दीवारों पर रामायण कालीन चित्रांकन देखने योग्य हैं. मठ में कई मंदिर स्थित हैं, जिनमें बालाजी मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, राम पंचायतन और वीर हनुमान मंदिर प्रमुख हैं.

श्री दूधाधारी मठ नागपुर के तत्कालीन मराठा शासक महाराजा रघुरावजी भोंसले के शाही संरक्षण में था. महाराजा ने एक शाही चार्टर जारी किया था, जिसके तहत मठ के प्रमुख को ‘राजेशरी’ की उपाधि दी जाती थी. इस परंपरा के अनुसार, मठ के पहले प्रमुख और संस्थापक महंत राजेश्री महंत बलभद्रदास जी महाराज थे. आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए मठ के वर्तमान प्रमुख, राजेश्री डॉ. महंत राम सुंदर दास जी महाराज हैं, जिन्हें आम जनता महंत महाराज के नाम से जानती है.

कैसे पहुंचे

दूधाधारी मठ रायपुर शहर के केंद्र से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. आप निजी वाहन, टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस के माध्यम से मठ तक पहुंच सकते हैं. रायपुर रेलवे स्टेशन और स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा दोनों से मठ तक टैक्सी या ऑटो रिक्शा द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.

3 – माँ महामाया मंदिर

रायपुर शहर में स्थित माँ महामाया मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो अपनी प्राचीनता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. माँ महामाया मंदिर की विशेष धार्मिक मान्यता है. यह मंदिर रायपुर के प्रमुख सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर की मान्यता के अनुसार, यहाँ देवी महामाया की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के समय राजा मर्द्धवदास ने माँ महामाया के दर्शन किए थे, और उनकी आशीर्वाद से उनकी सभी बाधाएँ दूर हो गई थीं. तभी से यह स्थान आस्था और विश्वास का केंद्र बन गया है. इस मंदिर में विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में भारी संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं. मान्यता है कि यहाँ माँ के दर्शन करने से हर तरह के संकट समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

इतिहास

यह मंदिर लगभग 1400 वर्ष पुराना है और रायपुर के 36 किलों में से एक किला था। इतिहास के अनुसार, राजा मर्द्धवदास के शासनकाल में खारुन नदी के तट पर एक पत्थर पर तीन बड़े सर्पों को देखा गया था, जो बाद में देवी महामाया की प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। माराठा काल में नागपुर के शासकों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. मंदिर में दो मुख्य मंदिर हैं माँ महामाया मंदिर और समलेस्वरी मंदिर. सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें माँ समलेस्वरी की प्रतिमा पर और सूर्यास्त के समय माँ महामाया की प्रतिमा पर पड़ती हैं, जो मंदिर की वास्तुकला की विशेषता को दर्शाती है.

कैसे पहुंचे

माँ महामाया मंदिर रायपुर के पुरानी बस्ती थाना के पास स्थित है, जो घड़ी चौक से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां पहुंचने के लिए आप निजी वाहन, टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस का उपयोग कर सकते हैं.

4 – कंकाली माता मंदिर

कंकाली माता मंदिर मध्य प्रदेश के रायपुर शहर में स्थित एक प्राचीन और रहस्यमय स्थल है. यह मंदिर तांत्रिक पीठ के रूप में प्रसिद्ध है और इसके संबंध में कई रोचक कथाएँ प्रचलित हैं. जो इसे विशेष बनाती हैं. ये मान्यताएँ श्रद्धालुओं के विश्वास और मंदिर के इतिहास से जुड़ी हुई हैं. कंकाली माता को तंत्र-मंत्र और शास्त्रों की देवी माना जाता है. उनकी पूजा करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, खासकर तंत्र साधना से जुड़े कार्यों में सफलता मिलती है, मान्यता है कि माता कंकाली की पूजा से शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है, और बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं, मंदिर के पास स्थित कंकाली तालाब में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग दूर हो जाते हैं. यह मान्यता बहुत पुरानी है, और यहाँ स्नान करने के बाद लोग ताजगी और स्वास्थ्य लाभ महसूस करते हैं.

कंकाली माता मंदिर साल में एक बार, विशेष रूप से विजयदशमी (दशहरा) के दिन खुलता है. इस दिन, शस्त्र पूजा और विशेष तंत्र साधना की जाती है, मंदिर में देवी के दर्शन करने के बाद, वहां पूजा के दौरान शस्त्रों की पूजा की जाती है. माना जाता है कि राम-रावण युद्ध के दौरान देवी काली ने शस्त्रों का आशीर्वाद दिया था, और ये शस्त्र अब मंदिर में पूजित हैं. दशहरे के दिन इन शस्त्रों की पूजा की जाती है. कंकाली माता को तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्ति का स्रोत माना जाता है. यहाँ पर तंत्र-मंत्र की साधना करने वालों का मानना है कि माता उनकी साधना को सिद्ध करती हैं और शक्तियों का आशीर्वाद देती हैं. मंदिर का स्थान शमशान भूमि के निकट होने की वजह से इसे एक शक्तिशाली और रहस्यमय स्थान माना जाता है. कहा जाता है कि यहाँ तंत्र साधना और पूजा-अर्चना से व्यक्ति को आत्मिक शांति और शक्ति मिलती है.

इतिहास

कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में दक्षिण भारत से कुछ नागा साधुओं की टोली रायपुर के इस क्षेत्र से गुज़री थी, जहाँ पहले शमशान घाट हुआ करता था. इन साधुओं ने यहाँ कंकाली मठ की स्थापना की, जो तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र बन गया. 17वीं शताब्दी में महंत कृपालु गिरी ने मंदिर के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देवी की अष्टभुजी प्रतिमा को तालाब के किनारे स्थापित किया. मंदिर में प्रवेश करते ही भगवान भैरवनाथ के दर्शन होते हैं, जो देवी के गर्भगृह की रक्षा करते हैं.

कैसे पहुंचे

रायपुर शहर में स्थित यह मंदिर शहर के प्रमुख मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. स्थानीय परिवहन या निजी वाहन के माध्यम से यहाँ पहुँचा जा सकता है.

5 – दक्षिणमुखी गणेश मंदिर

यदि आप छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में और इस प्राचीन सिद्धिविनायक गणपति का दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको ऐतिहासिक बूढ़ातालाब के तट पर स्थित इस दक्षिणमुखी गणेश मंदिर में आना चाहिए. यहां भगवान गणेश के विभिन्न रूपों की पूजा और भक्ति का आनंद ले सकते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह रायपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक भी बन चुका है.

इतिहास

रायपुर के ऐतिहासिक बूढ़ातालाब के तट पर स्थित दक्षिणमुखी गणेश मंदिर, श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। इस मंदिर की स्थापना 1979-80 में हुई थी, और तब से लेकर आज तक यह जगह भक्तों की मनोकामनाओं के पूर्ति का एक प्रमुख स्थल बन गई है।

मंदिर के पुजारी, पंडित विनोद मिश्रा बताते हैं कि यह मंदिर अपने आप में अद्वितीय है. “यहां जो भी भक्तिभाव से अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। मंदिर में प्रवेश करते ही मनुष्य के दुःखी भावनाएं खुशी में बदल जाती हैं.” मंदिर के अंदर श्रद्धालु भगवान गणेश की भक्ति और भजन करते हैं, जो इस स्थल को एक शांतिपूर्ण और धार्मिक वातावरण प्रदान करते हैं.

नारियल बांधने की मान्यता

मंदिर में एक विशेष मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त गणेश भगवान के नाम पर नारियल बांधते हैं. भक्तों का विश्वास है कि इस नारियल को बांधने से उनकी मनोकामना पूरी होती है. पंडित मिश्रा के अनुसार, “यहां रोजाना कम से कम 4 नारियल बांधते हैं. जब भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं, तो वे इन नारियल को खोलते हैं।”

आठ प्रमुख रूप और सिद्धिविनायक

इस मंदिर में गणेश जी के आठ प्रमुख रूपों की प्रतिमाएं दर्शायी गई हैं। इनमें वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानंद, लंबोदर, विघ्नहर्ता, धूम्रवर्ण और विकट रूप शामिल हैं. इन रूपों के नीचे उनके नाम और महत्व का उल्लेख भी किया गया है. इसके अलावा, मंदिर के अंदर सिद्धिविनायक की एक प्रतिमा भी स्थापित है, जो भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्रदान करने के लिए मानी जाती है.

कैसे पहुंचे

दक्षिणमुखी गणेश मंदिर, रायपुर के ऐतिहासिक बूढ़ातालाब के तट पर स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए आप निजी वाहन, ऑटो-रिक्शा, या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर सकते हैं. रायपुर के प्रमुख मार्गों से यह मंदिर अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, और यदि आप रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से आ रहे हैं, तो आपको केवल कुछ किलोमीटर का सफर तय करना होगा. मंदिर शहर के हृदय स्थल में स्थित होने के कारण यह आसानी से उपलब्ध है और भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है.

6 – बंजारी माता मंदिर

बंजारी माता मंदिर रायपुर के रावाभाटा क्षेत्र में स्थित एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है. यह मंदिर देवी बंजारी को समर्पित है, जो बंजारा समुदाय की कुलदेवी मानी जाती हैं. बंजारा समुदाय भारत के विभिन्न हिस्सों में अपने खानाबदोश जीवन के लिए जाना जाता है, और बंजारी माता को उनकी आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है.

इतिहास 

बंजारी माता मंदिर का इतिहास करीब 500 साल पुराना है. माना जाता है कि देवी बंजारी की मूर्ति पहले एक छोटे आकार की थी, जो सिर्फ सुपारी के आकार की थी. यह मूर्ति एक बंजारों द्वारा रायपुर के बाहरी इलाके में स्थित भनपुरी क्षेत्र में पाई गई थी. धीरे-धीरे यह मूर्ति बढ़कर 1 से 2 फीट की हो गई और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बन गई. यह मंदिर बंजारों के लिए एक पवित्र स्थल बन गया, जहां वे अपनी मनोकामनाओं को लेकर देवी के समक्ष पूजा-अर्चना करते थे. मंदिर के भीतर देवी बंजारी की मूर्ति स्थापित की गई है, और साथ ही परिसर में अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियाँ हैं. मंदिर परिसर में करीब 150 मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिनमें देवी-देवताओं की विभिन्न रूपों की प्रतिमाएँ शामिल हैं. मंदिर का गर्भगृह रंगीन काँच से सजा हुआ है, जिससे उसकी सुंदरता और भव्यता में वृद्धि होती है. यहाँ की मूर्तियाँ दर्शाती हैं कि यह स्थल केवल धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.

कैसे पहुंचे

बंजारी माता मंदिर रायपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित है. यह मंदिर बिलासपुर मार्ग पर स्थित है, और यहाँ पहुँचने के लिए आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या निजी वाहन का उपयोग कर सकते हैं. मंदिर तक पहुँचने का रास्ता काफी आसान है, और यह रायपुर शहर के बाहरी क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद प्रमुख रूप से पहचाना जाता है.

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