हरीश रावत विरोधियों के निशाने पर, हरदा को सीएम ने बताया हार-दा
देहरादून। नैनीताल सीट पर शिकस्त के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अब विरोधियों के निशाने पर हैं। उन्हें लेकर जहां पूर्व सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने टिप्पणी की, वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी उनपर कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि खुद को बड़ा कहने से कोई बड़ा नहीं होता, बड़ा वो होता है जिसे कार्यकर्ता बड़ा मानें। सीएम ने उन्हें हार-दा भी कह दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें हरीश रावत के हारने पर कोई ताज्जुब नहीं है। वह मुख्यमंत्री रहते दो-दो जगह से हारे हैं। उनका हारने का रिकॉर्ड ज्यादा है, जो साबित करता है कि खुद को बड़ा कहने से कोई बड़ा नहीं होता।
सीएम ने कहा कि वह प्रदेश के वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें प्यार से लोग हरदा बोलते हैं। पर लोगों ने अब ‘ह’ में ‘अ’ की मात्रा और लगा दी है। वह हरदा नहीं रहे बल्कि हार-दा हो गए हैं।
बता दें, मतदान के बाद से सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच ट्विटर वॉर चल रहा था। इस सियासी तकरार में वह न केवल एक दूसरे के खिलाफ खुलकर खड़े हुए कई तंज भी कसे। नैनीताल लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत को अब तक सियासी जीवन में मिली चुनावी हार का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने उन्हें फिर शिकस्त मिलने का दावा किया था। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक घेराबंदी शुरू कर दी थी। अब हरीश रावत की हार पर सीएम ने कटाक्ष किया है।
अटल हुआ विकासवादी नीतियों पर विश्वास: सीएम
लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देश की जनता का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम और बलिदान को भी नमन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की जनता का विकासवादी नीतियों पर विश्वास अटल हुआ है।
कहा कि पांच साल में मोदी सरकार ने गरीबों, किसानों व महिलाओं के कल्याण और सेना को सशक्त बनाने के जो प्रयास किए हैं, जनता ने उस पर अपनी मुहर लगाई है। ये जीत उन महिलाओं की जीत है, जिन्हें धुएं से मुक्ति मिली है, ये जीत उन युवाओं की जीत है, जिन्हें मुद्रा योजना से स्टार्टअप शुरू करने में मदद मिली है।
साथ ही बोले कि ये जीत उन किसानों की जीत है, जिन्हें बीज से लेकर बाजार तक एक आदर्श व्यवस्था मिली है, जिनके खाते में 6 हजार रुपये सालाना आ रहे हैं। ये जीत असंगठित क्षेत्र के उन लोगों की जीत है, जिन्हें पेंशन का हक मिला है।
एंटी इनकंबेंसी नहीं प्रो-इनकंबेंसी
मुख्यमंत्री ने कहा कि पहली बार लोकसभा चुनाव में एंटी इनकंबेंसी के बजाय प्रो-इनकंबेंसी फैक्टर की चर्चा रही। इस चुनाव में जातिवाद की करारी हार हुई है। विकासवाद व राष्ट्रवाद की जीत हुई है।
उत्तराखंड में बदला ट्रेंड
सीएम ने कहा कि उत्तराखंड की जनता ने पिछले ट्रेंड को बदलते हुए राज्य में सत्ताधारी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया है। सभी विजयी प्रत्याशियों को बधाई देते उन्होंने कहा कि यह जीत मोदी जी के प्रति उत्तराखंडियों के अटूट विश्वास का नतीजा है।
सीएम ने कहा कि इस सैन्यधाम के लोगों ने सेना के शौर्य पर सवाल उठाने वालों को करारा जवाब दिया है। उत्तराखंड के प्रति मोदी जी का प्रेम, शिव के प्रति श्रद्धा और उत्तराखंड को संवारने की सोच पर यहां की जनता ने मुहर लगाई है। उन्होंने विश्वास जताया कि उत्तराखंड में इस प्रचंड बहुमत के पाई-पाई का हिसाब मोदी उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास के रूप में अदा करेंगे।
राज्य सरकार के कामकाज पर मुहर
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने जीरो टोलरेंस की नीति अपनाने के साथ ही किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण, अटल आयुष्मान योजना, महिला सशक्तिकरण की दिशा में की गई पहल तथा जनता से किये वादों को संजीदगी से किया गया क्रियान्वयन को भी जनता ने सराहा है।
विपक्ष की नकारात्मक राजनीति धराशायी
सीएम ने कहा कि मोदी ने पिछले चुनाव परिणामों के बाद कहा था कि जनता से जितना मांगा उतना दिया है। इस बार उन्होंने अबकी बार 300 पार का नारा दिया था, जो जनता के आशीर्वाद से पूरा हुआ है। आज देश का कोई कोना नही है, जहां से भाजपा को समर्थन न मिला हो।
उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के विरोध में पूरा विपक्ष एक होकर मोदी हटाओ के नारे के साथ आगे बढ़ा। वाणी का जितना दुरुपयोग किया जा सकता था किया। पर जनता ने उन्हें नकार दिया है। आज विपक्ष की नकारात्मक राजनीति पूर्णत: धराशायी हुई है।
ईवीएम पर सवाल जनता का अनादर
सीएम ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम को लेकर जारी प्रलाप एवं देश में अराजकता फैलाने का कुत्सित षड्यंत्र जनता का अनादर है। उन्होंने कहा कि यह भारत की पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाने का विफल प्रयास है।
उन्होंने इसे देश की छवि को धूमिल करने वाला बताया है। कहा कि अपनी हार से बौखलाई 22 पार्टियां देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवालिया निशान उठाकर विश्व में देश और अपने लोकतंत्र की छवि को धूमिल कर रही है। उनके पास अपनी मांग का कोई तार्किक आधार तक नहीं यह मांग सिर्फ निजी स्वार्थ से प्रेरित है।