Mahakumbh Ka Itihaas: “अमरत्व का मेला महाकुंभ” अमृत की खोज, 12 सालों का अंतर जाने क्या हैं पूरी कहानी…

Mahakumbh Ka Itihaas: “अमरत्व का मेला महाकुंभ” अमृत की खोज, 12 सालों का अंतर जाने क्या हैं पूरी कहानी…

Mahakumbh Ka Itihaas: सालों पहले एक युद्ध हुआ, जिसमें एक तरफ देवता और दूसरी तरफ असुर थे, युद्ध का कारण था अमृत की लालच. ये एक ऐसी कहानी है जिससे आज भी लोगों की आस्था और संस्कृति जुड़ी हुई हैं. और यह कहानी है अमृत की खोज की. इसकी खोज कर रहे थे देवता और असुर, अमृत की खोज देवता और असुर दोनों ने मिलकर की, और जैसे ही अमृत मिला दोनों के अन्दर अमृत की लालच आ गई और जंग छिड़ गई, ये जुंग लगभग 12 दिनों तक चली जंग में छिना झपटी हुई जिसमे अमृत इधर उधर गिरता रहा. जंग तो अमृत के साथ ही खत्म हो गई पर इसकी बूंदों की कीमत का जश्न आज भी मनाया जाता हैं और कहते हैं इसकी खोज आज भी जारी हैं. दरअसल अमृत 4 जगह पर गिरा था प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक. इन जगहों पर महाकुम्भ का पावन अवसर इसी लिए मनाया जाता हैं.

महाकुम्भ एक अमरत्व का मेला हैं. अमृत की खोज अब भी जारी हैं. और यही कारण हैं जिसके कारण भारतीय जनमानस एक आज भी साथ-एक जगह इकठ्ठा होते हैं. गंगा किनारे लोगों का ताँता लगा होता हैं. चारो तरफ सिर्फ एक ही आवाज जय गंगे, हर-हर गंगे, जय गंगा मैया यही सुनने को मिलता हैं. अलग अलग जगह से अलग-अलग तरह की संस्कृति, सोच और विचार रखने वाले लोग यहाँ आते हैं और एक हो जाते हैं. यहाँ किसकी क्या पहचान हैं ये कोई नही जनता सभी मनुष्य मात्र रह जाते हैं. जो गंगा में डुबकी लगाते हैं और हर हर गंगे का जप दोहराते हैं. और यही कहलाता हैं महाकुम्भ. जो लोगो की श्रध्दा और आस्था का प्रमाण हैं.

महाकुम्भ का ये मेला पुरे 12 सालों में एक बार लगता हैं. और इस बार ये मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा हैं. महाकुम्भ के इस पावन अवसर के लिए तैयारी महीनो पहले से ही शुरू जाती हैं. मेले में शाही स्नान भी होता हैं. इस बार प्रयागराज में यह मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होने वाला हैं. जिसके लिए पूरी तैयारी हो चुकी हैं इस बार इस मेले में लगभग 45 करोड़ लोगो के आने की संभावना हैं. कुम्भ मेले का आयोजन एक प्राचीन परम्परा है जो सदियों से चली आ रही हैं ये उन 4 स्थानों में होती हैं जहां अमृत गिरा था यानि प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक. इन तीर्थ स्थानों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं. ये आयोजन किस आधार पर होता हैं, और 12 सालों का गैप क्यों हैं…

कुम्भ मेले का आयोजन किस आधार पर होता हैं…

कुम्भ मेले के आयोजन में खगोल विज्ञान, ज्योतिष, और धार्मिक मान्यताओं का बेहद महत्व हैं इनके आधार पर ही इस मेले का आयोजन किया जाता हैं.

कुम्भ मेला इस बार प्रयागराज में आयोजित हो रहा हैं और इसके पीछे सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की महत्वपूर्ण भूमिका है. जब मकर राशि में सूर्य और चंद्रमा वही वृषभ राशि में बृहस्पति होता हैं तब यह मेला प्रयागराज में आयोजित की जाती हैं. ठीक इसी तरह जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है तब ये कुम्भ मेले का आयोजन हरिद्वार में होता हैं. वही जब सूर्य और बृहस्पति दोनों ग्रह सिंह राशि में होते हैं, तब यह कुंभ मेला का आयोजन उज्जैन में होता है. इसके बाद जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होता है, तब यह कुंभ मेला का आयोजन नाशिक में होता है.

मेले का आयोजन 12 सालों में ही क्यों…

कहानी मेले का आयोजन 12 सालों में ही क्यों किया जाता हैं और इसके लिए हमे फिर से पुराणी कहानी कि ओर जाना होगा. जब असुर और देवता अमृत की खोज कर रहे थे तब दोनों के बीच जंग छिड़ी और ये युध्ह 12 दिनों तक चली और ये 12 दिन हम मनुष्यों के लिए 12 साल के बराबर है. और यही कारण है जिसकी वजह से इस मेले का आयोजन 12 सालों में अलग अलग स्थानों में किया जाता हैं. इन ग्रहों कि भूमिका ही हैं जो इस मेले का आयोजन कराती हैं. इसलिए जब इन ग्रहो का सही तालमेल बैठता है तब सही इन धार्मिक तीर्थ स्थलों पर महाकुम्भ का आयोजन होता हैं. इसके अलावा अर्धकुम्भ का मेला भी होता हैं. यह आयोजन हरिद्वार और प्रयागराज में 6-6 वर्षों के अंतराल में किया जाता हैं. तो यह थी कुम्भ से जुड़ी कहानी जो पौराणिक कथाओ और साधू संतों द्वारा बताई जाती हैं.

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