हिमालय दिवस : विकास की अंधी दौड़ को स्वीकार नहीं करता हिमालय

हिमालय दिवस : विकास की अंधी दौड़ को स्वीकार नहीं करता हिमालय

हिमालय इस बार फिर आपदाओं की चपेट में है। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद इस बार हिमाचल प्रदेश की तबाही ने फिर डराया है। विकास की अंधी दौड़ में जिस तरह से लोग पहाड़ों का सीना चीरकर अपने सपनों का घर खड़ा कर रहे हैं, प्रकृति उन्हें उस रूप में स्वीकार नहीं कर रही है।मतलब, साफ है मानव सभ्यता को अपने पूर्वजों से सीख लेते हुए प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर ही आगे बढ़ना होगा। हिमालय के प्रति लोगों की समझ को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराखंड ने हिमालय दिवस मनाने की पहल की, लेकिन बात अभी बहुत आगे नहीं बढ़ पाई। हिमालय के संवेदनशील पर्यावरण के लिए चिंतित देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने मिलकर वर्ष 2010 में देहरादून स्थित हेस्को केंद्र शुक्लापुर में डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के नेतृत्व में एक बैठक कर हर वर्ष 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाने का निर्णय लिया था।

हिमालय लोक नीति का दस्तावेज किया तैयार
उद्देश्य यही था कि हिमालय की गंभीर समस्याओं पर समाज को साथ लेकर यहां के ज्वलंत मुद्दों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करेंगे। इससे पहले वर्ष 2009 में हिमालय नीति संवाद का आयोजन भी देहरादून में किया गया था। जिसमें सुझाव के रूप में हिमालय लोक नीति का एक दस्तावेज तैयार किया गया। इसको वर्ष 2014-15 में आयोजित गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा के दौरान आमजन के बीच साझा किया गया। इस पर लगभग 50 हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। इसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजा गया था, लेकिन इस पर बात आगे नहीं बढ़ पाई।

अलग नीति बनाने की बात हुई, लेकिन परवान नहीं चढ़ पाई योजना

इस संबंध में पर्यावरणविद सुरेश भाई का कहना है कि कई मौकों पर हिमालयी राज्यों के लिए अलग नीति बनाने की बात हुई, लेकिन यह भी परवान नहीं चढ़ पाई। इसी का परिणाम है कि आज हिमालय पर ज्यादा खतरनाक अत्याचार जारी हैं।

पूरी दुनिया पर असर डालता है हिमालय का मौसम चक्र

हिमालय का मौसम चक्र यहीं नहीं पूरी दुनिया पर अपना असर दिखाता है। पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार, इसका विश्लेषण दो रूप में किया जाना बहुत जरूरी है। पहला यह कि विश्वभर में प्रकृति के प्रति हमारा जो व्यवहार रहा, उससे पूरे मौसम चक्र पर सीधा प्रभाव पड़ा है। इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है।

ऐसा कोई देश नहीं बचा, जहां इसके बड़े असर नहीं दिखाई दिए हों। इसमें यह समझना बहुत जरूरी है कि पृथ्वी में दो तिहाई समुद्र है, जब भी समुद्रों का तापमान बढ़ेगा तो बड़ी हलचल की संभावना रहती है। एलनीनो या लानिना जैसे समुद्र में हुए बदलाव, कहीं सूखा और अतिवृष्टि का कारण बनते हैं। समुद्र तट पर बसे लोग और पर्वतीय क्षेत्रों में बसे लोग सीधे तौर पर इसका शिकार बनते हैं।

दुनिया का कोई कोना ऐसा नहीं है, जहां आपदाओं ने पैर नहीं पसारे हों। इसी का एक नमूना इस साल हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला। हिमाचल की तबाही एक बड़ा सबक है। हमें हिमालय के अनुरूप विकास की योजनाएं बनानी होंगी। खासतौर से ढांचागत विकास, क्योंकि यह सेक्टर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इस पर लगातार बात होनी चाहिए कि, विकास की योजना को बनाते हुए कैसे प्रकृति का ध्यान रखा जाए। कैसे संभावित आपदाओं से बचा जाए।  – पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, संस्थापक हेस्को

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