Chhattisgarh News: पुलिस+अपराधिक गठजोड़=सुरेश चंद्रकार, सौरभ चंद्राकर और कुलदीप साहू=पुलिस के दामन पर छींटे…

Chhattisgarh News: रायपुर। छत्तीसगढ़ बनने से पहले मध्यप्रदेश के दौर में न अपराधियों का वो लेवल था और न ही पुलिस से उन्हें संरक्षण मिलता था। अपराध के नाम पर छोटे-मोटे मारपीट और चोरियां होती थीं। छोटे मामलों में भी पुलिस एक्टिव होकर न केवल अपराध दर्ज करती थी बल्कि आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज देती थी।
मगर नवंबर 2000 में अलग राज्य़ बनने के बाद पैसे का इतना फ्लो बढ़ा कि दीगर राज्यों के माफिया और ठेकेदार छत्तीसगढ़ आने लगे। जाहिर सी बात है, जहां भ्रष्टाचार के पैसे होते हैं, वहां स्वाभाविक रूप से अपराधी भी पनपने लगते हैं।
और यह माना हुआ सत्य है कि बिना पुलिस के संरक्षण में अपराधिक गतिविधियां फल-फूल नहीं सकती। थानेदार अगर ठान ले कि उसके इलाके में कोई चोरी या अपराध नहीं होगा तो फिर मजाल नहीं कोई घटना हो जाए।
जिले का एसपी अगर फरमान जारी कर दे कि कहीं कोई क्राइम हुआ और थानेदारों की संलिप्तता सामने आई तो उल्टे लटका दिया जाएगा तो क्राइम जीरो हो जाएगा।
बहरहाल, पिछले कुछ सालों में यूपी-बिहार की तरह छत्तीसगढ़ में पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ मजबूत होते चले गए। इसका नतीजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग खतम हो गई है।
खासकर, मैदानी इलाकों में सट्टा, कबाड़ी और जमीन पर अवैध कब्जे…पुलिस के संरक्षण में तेजी से बढ़े हैं। पुलिस के लोग खुद ही जुआ खिलवा रहे हैं। पिछले कुछ सालों में मीडिया में कई ऐसी खबरें सुर्खियों में रही कि जंगलों में टेंट लगवाकर हाई प्रोफाइल जुआ खिलवाया जा रहा है।
पिछले महीने अमलेश्वर थाने के पास जुआ खिलवाने पर इंटेलिजेंस चीफ ने पुलिस अधिकारियों को बुलाकर फटकार लगाई थी। मगर इसके बाद भी मामले बंद नहीं हुए, कुछ दिन बार रायपुर के पिरदा में पुलिस अधिकारी द्वारा जुआ खिलवाने का मामला सामने आ गया।
छत्तीसगढ़ में अपराधी, पुलिस गठजोड़ के वैसे तो सैकड़ों मामले हैं, मगर पिछले साल में ये तीन मामले बेहद चर्चित रहे हैं, उसके अपराधी किसी-न-किसी रूप में पुलिस से जुड़े रहे हैं। वे हैं कुलदीप साहू, सुरेश चंद्रकार और सौरभ चंद्राकर।
1. कुलदीप साहू-कुलदीप सूरजपुर का मामूली कबाड़ी था। मगर पुलिस के संरक्षण में उसे इतनी ताकत मिल गई कि वह पुलिस के लिए भस्मासूर बन गया। उसने सूरजपुर कोतवाली के एक हेड कांस्टेबल को न केवल अनी गाड़ से कुचलने का प्रयास किया बल्कि कुछ देर बाद उसके घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या कर दी। इस घटना से पूरा प्रदेश हिल गया था। बवाल मचने पर लगा कि कहीं यूपी की देखादेखी नई सरकार एनकाउंटर न करा दें, उसके पुलिसिया आका एक्टिव हुए और बकायदा पुलिस अफसरों से बात कर प्लांडवे में आत्मसमर्पण करवाया गया।

झारखंड के गढ़वा से उसे बस से बुलवाया गया और बलरामपुर बस स्टैंड में उतारकर फोटो खिंचवा कर मीडिया को जारी किया गया कि देखिए छत्तीसगढ़ की बहादुर पुलिस बहादुर कबाड़ी के साथ…। सरगुजा पुलिस के लिए वाकई ये डूब मरने वाली बात थी। अपनी घर की बेटी-बहू की हत्या करने वालों को भी संरक्षण।
2. सुरेश चंद्रकार-बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्रकार हत्याकांड में ठेकेदार सुरेश चंद्रकार भी आरोपी है। उसी के फार्म हाउस में मुकेश की हत्या हुई और घटना के बाद सुरेश को बकायदा बताया गया कि काम हो गया है। याने सुरेश की उसमें संलिप्तता थी। सुरेश 2010 तक बीजापुर में एसपीओ था। सल्वा-जुड़ूम के दौर में पुलिस उसे एसपीओ बनाती थी, जो नक्सलियों की रीति-नीति से वाकिफ होते थे या फिर कभी नक्सलियों से उनका कनेक्शन रहा हो।

10 हजार रुपए की नौकरी करने वाला सुरेश पुलिस के साथ रहकर जान गया कि बस्तर में ठेकेदारी के जरिये कैसे अमीर बना जा सकता है। सो, उसने नौकरी छोड़ दी और पुलिस के साथ रहकर जो उसने गुर सीखा, उसे आजमा कर 14 साल में इतना बड़ा ठेकेदार बन गया कि 200-200 करोड़ का काम लेने लगा।
3. सौरभ चंद्राकर-कुछ साल पहले तक भिलाई में जूस बेचने वाला सौरभ चंद्राकर सट्टे के बल पर इतना बड़ा आदमी हो गया कि उसने अपनी शादी में पूरे वॉलीवूड को दुबई बुला लिया था। करीब 200 करोड़ रुपए अपनी शादी पर उसने फूंक दिया।

सौरभ के सट्टे के कारोबार को दुर्ग-भिलाई की पुलिस का संरक्षण रहा। पुलिस के संरक्षण में ही उसका हौसला बढ़ता गया और अपना साम्राज्य फैलाते गया। यहां तक कि उसने दुबई में आफिस खोल लिया। उसके धंधे को फैलाने ेंमें पुलिस के कई अफसरों की भी भूमिका रही।






