CG Land Scam: अरबों की सरकारी जमीन का ऐसे किया वारा-न्यारा: कलेक्टर की बगैर अनुमति नायब तहसीलदार ने रेवड़ी की तरह बांट दी जंगल की जमीन…

CG Land Scam: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद न्यायधानी बिलासपुर में सरकारी जमीनों का माफियाओं ने अगर सबसे ज्यादा खेला किया है तो वह मोपका है। मोपका में राजस्व के अलावा वन विभाग की बड़े पैमाने पर जमीन है। राजस्व व वन विभाग के आधिपत्य वाले छोटे बड़े झाड़ के जंगल की जमीन है। दो खसरा नंबर में तकरीबन 310 एकड़ सरकारी जमीन है। माफियाओं की नजर अरबों रूपये के इस जमीन पर लगी हुई थी। राजस्व विभाग के मैदानी अमले और अफसरों से मिलीभगत का खेल चला और देखते ही देखते अरबों की जमीन एक झटके में सरकारी से निजी हो गई। जांच कमेटी की रिपोर्ट में कुछ इसी तरह की चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। जांच टीम ने मोपका के दो खसरों पर फोकस किया। खसरा नंबर 993 और 992 की तकरीबन 311 एकड़ बेशकीमती जमीन। जांच टीम ने दोनों खसरों की 311 एकड़ जमीन की जांच पूरी कर ली है। राजस्व दस्तावेजों के अलावा मिशल से मिलान कर लिया है। राजस्व दस्तावेजों और मिशल से मिलाने के दौरान बड़ी गड़बड़ी सामने आई है।
सरकारी जमीन हो गई प्राइवेट लैंड
राजस्व व वन विभाग के आधिपत्य वाली जमीन अब प्राइवेट लैंड हो गई है। 311 एकड़ शासकीय भूखंड में से 35 के करीब पट्टे जारी किए गए हैं। पट्टा जारी करते वक्त लैंड लोकेशन पर खासतौर से ध्यान रखा गया है। मसलन प्राइम लोकेशन की जमीन जो वर्तमान में लाखों रुपये की है उसे रेवड़ी की तरह फर्जी ढंग से बांट दिया गया है। जांच में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि मौके पर कब्जा किसी दूसरे का है और पट्टा किसी अन्य के नाम से जारी किया गया है। मतलब साफ है माफियाओं ने अपने फायदे के लिए राजस्व अफसर से मिलकर फर्जी नाम से पट्टा जारी करवा लिया और करोड़ों की बेशकीमती जमीन हथिया ली।
गाइड लाइन जारी होने से पहले ही कर दिया वारा-न्यारा
छोटे-बड़े झाड़ के जंगल की जमीन का पट्टा फर्जी तरीके से जारी कर दिया गया है। अचरज की बात ये कि पट्टा देने का नियम 1980 में आया और राजस्व अधिकारी ने एक साल पहले ही पट्टा जारी कर दिया था। वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम लागू किया था। इसके लिए कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का गठन किया गया था। क्रियान्वयन समिति में डिप्टी कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार और नायब तहसीलदार को शामिल किया गया था।
एक फर्जीवाड़ा और आया सामने
कलेक्टर की अनुमति से शासकीय भूखंड का पट्टा देने के लिए कलेक्टर एसडीएम को आदेश जारी करता है। कलेक्टर के आदेश पर एसडीएम पट्टा जारी करता है। मोपका में इन नियमों की धज्जियां उड़ाई गई। तत्कालीन नायब तहसीलदार ने बगैर अनुमति के करोड़ों की शासकीय भूखंड का पट्टा जारी कर दिया।
दाे खसरा नंबर की जमीन बेशकीमती, इन्हीं पर माफियाओं की लगी नजर
खसरा नंबर 993 में 242 एकड़ से अधिक और खसरा नंबर 992 में 68 एकड़ से ज्यादा शासकीय भूखंड राजस्व रिकार्ड में दर्ज है। इन्ही दो खसरा नंबर की जमीनों पर माफियाओं की नजर लगी हुई थी। खसरा नंबर 993 को दो टुकड़ाें में 993/1 और 993/2 में बांटकर नक्शा भी अलग-अलग बना दिया है।
अब क्या होगा
जांच रिपोर्ट कलेक्टर के हवाले किया जाएगा। कलेक्टर के आदेश पर नियम विरुद्ध तरीके से दिए गए पट्टों को निरस्त किया जाएगा। पट्टा निरस्त करने के साथ ही कब्जाधारियों को बेदखली की नोटिस दी जाएगी। बेदखली के बाद जिला प्रशासन अपनी जमीन पर कब्जा करेगा। इसके अलावा राजस्व दस्तावेजों में संशोधन किया जाएगा।