हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का अभियान हरिद्वार से

हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का अभियान हरिद्वार से

आज विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर बुधवार को तीर्थनगरी हरिद्वार से हिंदी को राष्ट्रभाषा और संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का अभियान शुरू होगा। पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री, सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के मुताबिक, देश और दुनिया के जान माने हिंदी विद्वान व साहित्यकार हरिद्वार में जुटेंगे और हिंदी को उसका वैभव दिलाने के लिए संकल्प लेंगे। डॉ. निशंक देहरादून स्थित अपने कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदी दिवस पर हरिद्वार स्थित आयुर्वेद विवि के ऋषिकुल परिसर के सभागार में यह आयोजन होगा। जिसमें ब्रिटेन से दिव्या माथुर, कनाडा से शैलजा सक्सेना, अमेरिका अनूप भार्गव, ब्रिटेन से जय वर्मा, लंदन से कृष्ण टंडन, जापान से रमा शर्मा, कनाडा से स्नेह ठाकुर, आयरलैंड से अभिषेक त्रिपाठी, रूस से इंद्रजीत सिंह, उज्बेकिस्तान से उल्फत मुखीबोबा, वैश्विक हिंदी परिवार से कवि व लेखक अनिल जोशी व प्रतिष्ठित लेखिका डॉ. मधु चतुर्वेदी दो दिवसीय आयोजन में भाग लेंगे। डॉ. निशंक के मुताबिक, संगोष्ठी के बाद सभी प्रतिभागी हर की पैड़ी पर हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का संकल्प लेंगे।

विश्व में हिंदी की गरिमा बढ़ाने के लिए अभियान
उन्होंने कहा कि हिंदी की पहचान, एकता के सूत्र में हिंदी को स्थापित करने और विश्व में हिंदी की गरिमा बढ़ाने के लिए इस अभियान को चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल सका। किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रभाषा उसकी पहचान होती है। जब प्रधानमंत्री बाहर जाते हैं और हिंदी में भाषण देते हैं तो लोग कहते हैं कि यह हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं। पहली बार पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था, जिससे देश का सम्मान बढ़ा।

निशंक ने कहा कि हिंदी दुनिया की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषाओं में से है। दुनिया के 250 से अधिक विश्वविद्यालयों व 600 महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। पूरे विश्व ने हिंदी को स्वीकार किया, लेकिन देश में इसे राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं मिल सका। जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 से 350 में यह व्यवस्था की गई थी कि 10 वर्ष के अंदर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया जाएगा। तब दक्षिण भारत कुछ हिस्से में हिंदी सिखाने का जिम्मा दक्षिण भारत हिंदी प्रचारणी सभा को दिया गया था।

उस दौरान राष्ट्रपति चाहते तो समयावधि से पहले भी अधिसूचना जारी कर सकते थे। लेकिन दुनिया का यह पहला उदाहरण कि कोई राष्ट्र गुलामी का चिह्न (अंग्रेजी) अपने सिर पर बोझकर बनाकर ढो रहा है। जबकि हमारे से बाद में स्वतंत्र हुआ इजरायल ने तबाह हो गई हिब्रू भाषा को जिंदा किया और राष्ट्रभाषा बनाया। उन्होंने कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा या संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनेगी तो 20 करोड़ से अधिक नौकरियों के अवसर बनेंगे।

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