Bilaspur High Court: नाबालिग से दुष्कर्म, हाई कोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट के आजीवन कारावास का फैसला…

Bilaspur High Court: नाबालिग से दुष्कर्म, हाई कोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट के आजीवन कारावास का फैसला…

Bilaspur High Court: बिलासपुर। नाबालिग का अपहरण और दुष्कर्म के मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को तीन अलग-अलग धाराओं में एक साल, सात साल और पाक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाया था। जेल में बंद आरोपी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले काे बरकरार रखा है जिसमें कोर्ट ने आरोपी को नाबालिग के अपहरण और यौन शोषण का आरोपी माना है। दोषसिद्धी को यथावत रखते हुए सजा में संशोधन कर दिया है।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यदि पीड़िता की गवाही स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय है, तो दोषसिद्धि के लिए अन्य साक्ष्यों की जरुरत नहीं पड़ती। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया है। घटना 11 नवंबर 2021 की है। 13 वर्षीय नाबालिग लड़की अपने घर के बाहर खेल रही थी। उसी दौरान आरोपित राजेलाल मेरावी निवासी जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई ने उसका अपहरण कर लिया। आरोपी ने लड़की का मुंह दुपट्टे से बांधकर उसे जबरन अपने घर ले गया और वहां दो बार दुष्कर्म किया। पीड़िता के पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 342, 363, 376 आइपीसी और पाक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज कर ट्रायल कोर्ट में चालान पेश किया।

मामले की सुनवाई विशेष अपर सत्र न्यायाधीश खैरागढ़ की अदालत में हुई। विशेष न्यायाधीश ने आरोपी को धारा 342 के तहत एक वर्ष कठोर कारावास, धारा 363 (अपहरण) के तहत सात वर्ष कठोर कारावास और पाक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तीनों सजाओं को एकसाथ चलाने का निर्देश दिया था। विशेष कोर्ट के फैसले को आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने दलील पेश करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर सजा सुनाया है। अन्य गवाहों की गवाही में विरोधाभास था। मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई और पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए आसिफिकेशन टेस्ट (हड्डियों की जांच) नहीं कराई गई। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता आरोपी की दोषसिद्धी को बरकरार रखते हुए आजीवन कारावास की सजा को 20 साल सश्रम कारावास में बदल दिया है।

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share