Bilaspur High Court: चिल्‍हर और राउंड फिगर के नाम पर जनता से लूट: हाईकोर्ट ने सरकार को जारी किया नोटिस

Bilaspur High Court: चिल्‍हर और राउंड फिगर के नाम पर जनता से लूट: हाईकोर्ट ने सरकार को जारी किया नोटिस

Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में पैंसेजरों से बसों में किराये के नाम राउंड फिगर का बहाना बनाकर आपरेटरों द्वारा लाखों का खेला किया जा रहा है। इस मसले में राज्य सरकार ने बताया कि किराये पर पुनर्विचार को लेकर पत्र जारी किया है जो भूलवश विधि एवं विधायी विभागी को भेज दिया गया था। अब इस संबंध में कैबिनेट में निर्णय होना है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के समक्ष लंबित है, जिस पर निर्णय होना है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में जनहित याचिका की सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पूर्व आदेश के परिपालन के बारे में जानकारी मांगी। राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से एक हलफनामा पेश किया गया है। किराया के संबंध में प्रस्ताव मुख्यमंत्री के समक्ष लंबित है। नगरीय निकाय चुनाव को लेकर आचार संहिता के कारण इसमें विलंब हो रहा है। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने जवाब के लिए डिवीजन बेंच से समय मांगा। डिवीजन बेंच ने अनुरोध को स्वीकार करते हुए जनहित याचिका की अगली सुनवाई के लिए 17 मार्च की तिथि तय कर दी है।

पूर्व में प्रदेश में सिटी बसों के बंद होने से आम लोगों को हो रही परेशानियों को लेकर मीडिया में प्रकाशित खबर को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने इसे गंभीरता से लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ करने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को देते हुए इसे पीआईएल के रूप में रजिस्टर्ड करने कहा था। मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने प्रदेश के प्रत्येक बस स्टैंड पर किराया सूची चस्पा करने, बसों में डिस्प्ले बोर्ड लगाने और किराये पर पुनर्विचार करने का निर्देश राज्य शासन को दिया था। इस मामले में 15 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान शासन ने कोर्ट को बताया था कि विधि एवं विधायी विभाग को पत्र भेजा गया है। विधि एवं विधायी विभाग से इस संबंध में अधिसूचना जारी होगी। 8 नवंबर को सुनवाई के दौरान बताया गया कि विधि विभाग को पत्र गलती से भेज दिया गया था। इस संबंध में कैबिनेट में निर्णय होना है। पूर्व में हाई कोर्ट ने इस पर चार सप्ताह के भीतर कैबिनेट की बैठक कर निर्णय लेने को कहा था।

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