Bilaspur High Court: बड़ा फैसला: हाई कोर्ट ने कहा, प्रेम प्रसंग और आपसी सहमति से बनाए शारीरिक संबंध दुष्कर्म और पाक्सो में नहीं

Bilaspur High Court: बड़ा फैसला: हाई कोर्ट ने कहा, प्रेम प्रसंग और आपसी सहमति से बनाए शारीरिक संबंध दुष्कर्म और पाक्सो में नहीं

Bilaspur High Court: बिलासपुर। नाबालिग के साथ दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद युवक की अपील पर हाई कोर्ट के सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। अभियोजन पक्ष कोर्ट के सामने यह साबित करने में असफल रहा कि घटना के वक्त पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी। सुनवाई के बाद पीड़िता ने यह खुलासा किया कि याचिकाकर्ता आरोपी के साथ उसके प्रेम संबंध थे। दोनों ने आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए हैं। पीड़िता की स्वीकारोक्ति के बाद सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को स्वीकार करते हुए पाक्सो कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। कोर्ट में जेल में बंद याचिकाकर्ता को रिहाई का आदेश भी जारी कर दिया है। स्पेशल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दुष्कर्म के आरोप में 10 साल की सजा सुनाई थी।

गिरफ्तारी के समय 19 वर्षीय आरोपित तरुण सेन पर आरोप था कि 8 जुलाई 2018 को एक लड़की को बहला-फुसलाकर अपने साथ भगा ले गया और कई दिन तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। लड़की के पिता ने 12 जुलाई को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस ने 18 जुलाई को लड़की को दुर्ग से बरामद किया। विशेष न्यायाधीश (अत्याचार निवारण अधिनियम), रायपुर की अदालत ने 27 सितंबर 2019 को आरोपी को आइपीसी की धारा 376(2)(एन) और पाक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत 10-10 साल की सजा और जुर्माने से दंडित किया था। दोनों सजाएं साथ चलने के आदेश दिए गए थे। युवक पिछले करीब 6 साल से जेल में बंद था।

याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पाया कि स्कूल के दाखिल-खारिज रजिस्टर में पीड़िता की जन्मतिथि 10 अप्रैल 2001 दर्ज है, परंतु उसकी खुद की गवाही के अनुसार वह 10 अप्रैल 2000 को जन्मी थी। अभियोजन पक्ष कोई ठोस दस्तावेज, जैसे जन्म प्रमाणपत्र या हड्डी की जांच (आसिफिकेशन टेस्ट) प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे पीड़िता की सही उम्र साबित हो सके। पीड़िता ने कोर्ट में यह स्वीकार किया कि वह आरोपी के साथ अपनी मर्जी से गई थी और उनके बीच प्रेम संबंध थे। मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की चोट या जबरदस्ती के निशान नहीं मिले।

0 सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि स्कूल के दस्तावेज ही अकेले पीड़िता की उम्र प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। जब तक उस दस्तावेज को तैयार करने वाले व्यक्ति की गवाही न हो। जस्टिस अरविंद वर्मा ने कहा कि जब पीड़िता की उम्र नाबालिग सिद्ध नहीं होती और वह सहमति से आरोपित के साथ गई थी, तो इस मामले में दुष्कर्म या पाक्सो की धाराएं नहीं बनती। यह एक स्पष्ट रूप से प्रेम प्रसंग और सहमति से भागने का मामला है। कोर्ट ने आरोपित की सजा को रद्द करते हुए उसे सभी आरोपों से बरी किया और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है।

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share