Basant Panchami 2025: यूपी से बिहार तक बहुत धूमधाम से की जाती है सरस्वती पूजा, जानिये क्या है खासियत, पूजा का शुभ मुहूर्त और प्रसाद भी जाने…

Basant Panchami 2025: विद्या की देवी माँ सरस्वती जिस पर प्रसन्न हों उस पर सौभाग्य और लक्ष्मी की वर्षा अपने आप ही हो जाती है। बसंत पंचमी के शुभ दिन पर माँ सरस्वती की पूजा देश भर में की जाती है। लेकिन इस पूजा की जैसी धूम बिहार और उत्तर प्रदेश में होती है वैसी और कहीं देखने में नहीं आती। कृष्ण प्रेम में पगी नगरी वृंदावन और मथुरा में इस दिन वसंतराज कामदेव को दूसरा जन्म देने के लिए श्री कृष्ण का आभार जताया जाता है वहीं बिहार के स्कूलों में ही नहीं, गली-मोहल्लों-चौराहों पर भी माँ सरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। कहते हैं बिहार में ही कवि कालीदास ने मां सरस्वती की आराधना की थी और उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। आइए जानते हैं इन प्रदेशों में इस दिन किस तरह का माहौल होता है।
उत्तर प्रदेश में जताते हैं श्री कृष्ण का आभार
वसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है। और प्रेम के देवता हैं कामदेव। कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन प्रेम के देवता कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ धरती पर आते हैं। कहा जाता है कि कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। चलिए इससे जुड़ी कथा आप को बताते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन शिव तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने कामदेव से प्रार्थना की कि वे शिव जी की तपस्या भंग करें। कामदेव ने देवताओं की विनती स्वीकार की और तपस्यारत शिवजी पर पुष्प बाण चला दिया। इससे शिव जी की तपस्या भंग हो गई और कुपित होकर उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी जिससे कामदेव वहीं के वहीं भस्म हो गए। यह भी कहा जाता है कि बाद में शिवजी ने कामदेव को क्षमा कर दिया और श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का पुनर्जन्म हुआ।
मथुरा-वृंदावन सरीखी कृष्ण प्रेम में पगी नगरियों में इस दिन कामदेव को पुनर्जन्म देने के लिए श्री कृष्ण का आभार जताया जाता है क्योंकि कामदेव प्रेम के देवता हैं और प्रेम ही तो इस सृष्टि का आधार है। उत्तर प्रदेश में इस दिन पीले फूलों से मंदिरों को सजाया जाता है। लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग की मिठाइयां और मीठे चावल खाते हैं।
बिहार में कालिदास जी ने की थी सरस्वती की साधना,यहां इस दिन गली-चौराहों पर उमड़ता है जनसैलाब
जिस तरह बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में दुर्गा उत्सव के दौरान दुर्गा देवी की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और पूरे नौ दिन श्रद्धालुओं का मेला उमड़ा रहता है, उसी तरह का नज़ारा बिहार में सरस्वती पूजा के दिन दिखाई देता है। ये माना जाता है कि महाकवि कालिदास को जब उनकी पत्नी से तिरस्कृत होना पड़ा तब बिहार के बेलवा नामक स्थान पर उन्होंने सरस्वती माता की उपासना की थी। आगे चलकर कालीदास जी को मध्य प्रदेश के उज्जैन में रहने के दौरान ख्याति प्राप्त हुई और वे महाकवि कहलाए।
बिहार में सैकड़ों सालों से माँ सरस्वती की विशेष पूजा के प्रमाण मिलते हैं। आज भी वहां विद्यालयों में तो सरस्वती पूजा होती ही है जहां विद्यार्थी अपने उज्जवल भविष्य के लिए मां सरस्वती से आशीर्वाद मांगते हैं और कलाप्रेमी भी वाग्देवी का स्मरण करते हैं, वहीं हर गली- मोहल्ले और चौराहे पर भी देवी की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इसके लिए महीनों पहले से मूर्तिकार मां सरस्वती की मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं। सरस्वती पूजा के दिन सड़कों पर जन सैलाब उमड़ता है।
दो दिन तक भव्य पूजा उत्सव चलता है। रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। संगीत के कार्यक्रम प्रमुखता से आयोजित किए जाते हैं। अगले दिन माता के विसर्जन तक पूजा की धूम रहती है। श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। जिसे संभालने के लिए पुलिस को कड़े प्रबंध करने होते हैं। प्रसाद की बात करें तो बिहार में इस दिन मालपुए और खीर का भोग माँ सरस्वती को लगाया जाता है।
साल 2025 में इस दिन है सरस्वती पूजा
सरस्वती पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो हर वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन पालक अपने नन्हे बच्चों से वर्णमाला का प्रथम अक्षर लिखवाकर विद्यारंभ करवाते हैं वहीं बड़े बच्चे अपने परिजनों के साथ अपनी काॅपी-पुस्तकों की पूजा करते हैं और माँ सरस्वती का आशीर्वाद मांगते हैं।
पंचांग के अनुसार इस साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 2 फरवरी 2025 को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 2 फरवरी 2025 को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। बात करें पूजन के शुभ मुहूर्त की तो सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह सात बजकर नौ मिनट (07 बजकर 09 मिनट ) से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहने वाला है। बता दें कि सूर्योदय का समय सुबह सात बजकर नौ मिनट अनुमानित है।
माता सरस्वती को लगाएं इन चीज़ों का भोग
माता सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन पीले कपड़े पहनने का विधान है। साथ ही उन्हें भोग में पीले रंग की मिठाइयां जैसे बूंदी, बूंदी के लड्डू, बेसन के लड्डू, केसरिया मीठा चावल आदि के साथ खीर, मालपुए, राजभोग आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है और आपस में बांट कर खाया जाता है। इस दिन पूजा में पांच फल ज़रूर चढ़ाए जाते हैं जिसमें बेर का खास स्थान होता है। इसके अलावा केला, संतरा, पपीता आदि फल भी आप चढ़ा सकते हैं।