Land Scam: कोटा के एक और एसडीएम का कारनामा आया सामने: जंगल की जमीन काे कृषि भूमि बताकर कमर्शियल उपयोग के लिए कर दिया था डायवर्सन…

Land Scam: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद जमीन की हेरा-फेरी करने वालों ने सरकारी जमीनों को हथियाने के बाद अब जंगल की जमीन की ओ नजरें गढ़ा दी है। रतनपुर से लगे घासीपुर गांव में अरबों की जंगल की जमीन है। वन विभाग के अफसरों की लापरवाही और राजस्व विभाग के आला अधिकारी व अमले की चालाकी के चलते बेशकीमती जमीनों को हथियाने और कब्जे का खेल चह रहा है। कोटा राजस्व अनुविभाग के तत्कालीन एसडीएम युगल उर्वशा ने जंगल की जमीन को कमर्शियल हेड में बदलते हुए डायवर्सन कर दिया। एनपीजी ने घासीपुर गांव के जंगल की जमीन पर माफियाओं के खेल को उजागर किया था। कलेक्टर अवनीश शरण ने बड़े झाड़ के जंगल की जमीन का कमर्शियल हेड में डायवर्सन को रद्द कर दिया है।
महामाया की नगर रतनपुर से लगे घासीपुर में माफियाओं की नजरें जंगल की बेशकीमती जमीनों पर टिकी हुई है। घासीपुर और आसपास के गांव से लगे जंगल में हजारों एकड़ जंगल की जमीन है। जंगल की जमीन को माफिया कब्जे करने में लगे हुए हैं। जंगल की जमीन पर बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। अचरज की बात ये कि कब्ज की जमीन से धान की फसल लेने के बाद समर्थन मूल्य में बेच भी रहे हैं। सरकार धान खरीद भी रही है। इस खेल में राजस्व विभाग के आला अधिकारी से लेकर मैदानी अमले की भूमिका सबसे ज्यादा संदेहास्पद है। कोटा राजस्व अनुविभाग के तत्कालीन एसडीएम युगल उर्वशा का एक फर्जीवाड़ा सामने आया है। राजस्व व वन विभाग के रिकार्ड में बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज 60 डिसमिल जमीन को तत्कालीन एसडीएम उर्वशा ने कृषि भूमि में दर्ज कर दिया और कमर्शियल प्रयोजन के लिए डायवर्सन भी कर दिया। जंगल की जमीन को एसडीएम ने एक झटके में कागज में खेत बता दिया और फिर उसका हेड भी बदल दिया। कृषि से सीधे कमर्शियल मद में परिवर्तन कर दिया। कमर्शियल मद में परिवर्तन के बाद रिसार्ट बनाने की तैयारी शुरू हो गई। जांच के बाद कलेक्टर ने डायवर्सन काे रद्द करते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है।
निस्तार पत्रक में बड़े झाड़ का जंगल
खसरा नंबर 61/10 कुल रकबा 2.023 हेक्टेयर जमीन निस्तार पत्रक से अलग नहीं हुआ है। जांच टीम ने जब मिसल से रिकार्ड में दर्ज रकबे का मिलान किया तो मौके पर अधिक पाया गया। गड़बड़ी की पुष्टि के बाद अतिरिक्त कलेक्टर को पत्र लिखकर प्रकरण के पुनर्विलोकन की अनुमति मांगी गई। एडीएम से अनुमति मिलने के बाद पक्षकार को नोटिस देकर स्पष्टीकरण लिया गया। इसमें पक्षकार ने बताया कि वह सेना में अपनी सेवाएं दे चुका है और यह जमीन उसे भूतपूर्व सैनिक की हैसियत से मिली है। नायब तहसीलदार कोटा द्वारा 5 अप्रैल 1983 में दिए गए पट्टे का हवाला दिया। सुनवाई के बाद आदेश में कहा कि संबंधित जमीन राजस्व अभिलेख निस्तार पत्रक में बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज है और निस्तार पत्रक से भी अलग नहीं हुआ है। रकबा मिसल से अलग नहीं होने के कारण कोटा एसडीएम द्वारा 22 नवंबर 2024 को हुए डायवर्सन आदेश को कलेक्टर ने रद्द करते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दिया है।
एसडीएम की भूमिका पर उठे सवाल
निस्तार पत्रक में बड़े झाड़ के जंगल की जमीन के रूप में दर्ज होने और मिसल में भी जंगल की जमीन की पुष्टि के बाद भी तत्कालीन एसडीएम ने पहले जंगल की जमीन को कृषि भूमि बताया और फिर कागजों में मद परिवर्तन कर उसे कमर्शियल उपयोग के लिए डायवर्सन भी कर दिया। तत्कालीन एसडीएम की भूमिका की जांच क्यों नहीं की गई या फिर जानबुझकर फाइल बंद कर दी गई। इसे लेकर अब सवाल उठने लगा है।