अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से स्वीकार किया कि उनके देश में 30 से 40 हजार आतंकी हैं। उन्होंने इसके लिए पूर्व की सरकारों को जिम्मेदार भी ठहराया। पाकिस्तान इस समय गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है और उसे दिवालिया होने से बचने के लिए अमेरिकी मदद किसी भी हालत में चाहिए। अत: इमरान अपने देश की छवि को बचाना चाहते हैं जिस वजह से उन्होंने यह बयान दिया है।
दरअसल 1980 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में सीआइए के नेतृत्व में सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बाहर निकालने का अभियान शुरू किया गया था। इस दौर में ही पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जिया-उल-हक ने भारत को तोड़ने के लिए एक रणनीतिक अभियान शुरू किया था। वहीं साम्यवाद के खिलाफ सीआइए के अभियान में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और सऊदी अरब को सक्रिय साझेदार बनाया। तीनों ने मिलकर मुस्लिम देशों से स्वयंसेवकों का चयन, प्रशिक्षण और उन्हें हथियार देकर अफगानिस्तान भेजना शुरू किया। इसे जिहाद का नाम दिया गया और समूचे मुस्लिम संसार से कट्टरपंथी ताकतों को इस जिहाद में शामिल होने का आह्वान किया गया। यह जिहाद एक दशक तक चला और इस दौरान अमेरिका पूरी ताकत के साथ पाकिस्तान के पीछे खड़ा रहा। सोवियत रूस इस युद्ध में टिक नहीं पाया और उसे 1989 में अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। अमेरिकी मदद से मुजाहिदीनों ने एक अजेय समझी जाने वाली महाशक्ति को करारी शिकस्त दे दी थी।
इमरान खान ने अपने देश के आतंकियों के कश्मीर और अफगानिस्तान में प्रशिक्षण लेने का दावा तो किया है, लेकिन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकी केंद्र हैं, यह स्वीकार करने से वे कन्नी काट गए। दरअसल कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है जिसके चलते पाकिस्तानी समाज संकीर्णता और अस्थिरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अब पाकिस्तान में देवबंदी जेहादियों का ऐसा समूह बन गया है जिसे अलकायदा, तालिबान, हरकत उल अंसार और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे कुख्यात आतंकी संगठनों का समर्थन प्राप्त है।
पाकिस्तान का कुख्यात आतंकी संगठन जमात-ए-इस्लामी लाहौर में सैयद मौदूदी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट नामक एक संस्थान चलाता है। इसका काम इस्लामी चरमपंथियों को प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता देना है। यहां पर सिकियांग के उइगर समेत उजबेक और तुर्क प्रशिक्षण लेते रहे हैं। चेचन्या में रूसी सेना से लड़ने वाले चरमपंथी यहीं से निकले हैं।
इस्लामाबाद का इस्लामिक विश्वविद्यालय भी कट्टरपंथी ताकतों का बड़ा गढ़ है। वर्ष 1995 में इस्लामाबाद के मिस्न के दूतावास पर ट्रक बम से हमला कर 29 लोगों को मारने वाले अल-जिहाद और अलगामा अल इस्लामिया के आतंकी विश्वविद्यालय परिसर में ही रहते थे। कराची के न्यूटाउन क्षेत्र में मौलाना मोहम्मद युसूफ बिनौरी उपनगर मस्जिद क्षेत्र के जमायतउल-उलूम-इल-इस्लामिया में दूसरे कई देशों से आए विद्यार्थी चरमपंथ और कट्टरपंथ का पाठ सीखते हैं। मुल्ला उमर समेत तालिबान के अधिकांश लड़ाके यहीं से निकले हैं।
मुजफ्फराबाद, अलियाबाद, कहुटा, हजीरा, मीरपुर, रावलकोट, रावलपिंडी समेत गुलाम कश्मीर में अनेक आतंकी प्रशिक्षण केंद्र हैं। वर्ष 1993 में पाकिस्तान में बने आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार का मुख्यालय मुजफ्फराबाद में है। इसके साथ की इसका एक केंद्र अफगानिस्तान के खोस्त में है। यह कश्मीर के अलावा बोस्निया और म्यांमार में भी सक्रिय है। कुख्यात आतंकी संगठन हरकतउल- मुजाहिदीन का मुख्यालय पाकिस्तान के सेहसाणा में है। कारगिल युद्ध में पाक सेना के साथ इस आतंकी संगठन के आतंकी भी शामिल थे। हिजबुल मुजाहिदीन का केंद्र मुजफ्फराबाद में है। इस आतंकी प्रशिक्षण केंद्र में भर्ती के लिए जिहाद को केंद्र में रखकर नए रंगरूटों के लिए अखबारों में विज्ञापन सामान्य बात है।
पाकिस्तान के इन कुख्यात आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों में मसूद अजहर की खास भूमिका है। मसूद अजहर छह लाख आतंकियों की भर्ती का दावा करता है जिसमें से हजारों कश्मीर में जिहाद के लिए भर्ती किए गए हैं। इस आतंकी संगठन का तंत्र दक्षिण एशिया के साथ पश्चिम एशिया अफ्रीका और यूरोप तक फैला हुआ है। इस संगठन का पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में एक गोपनीय संचार केंद्र भी है। मसूद अजहर की शिक्षा कराची के एक मदरसे में हुई और 1989 में मजहबी तालीम में आलिमिया या स्नातकोत्तर की डिग्री ली। वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मदरसों और आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों पर अक्सर प्रशिक्षु जिहादियों को मजहबी तकरीर सुनाने जाता है।
कश्मीर का यह आतंकी भारत में आत्मघाती हमलों को अंजाम देने लिए दुनियाभर में कुख्यात है। कट्टरपंथी विचारों वाले ऑडियो कैसेट कश्मीर घाटी में भेज कर यह युवा वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करता है। वर्ष 1999 में भारत की कैद से छूटने के कुछ महीनों बाद ही श्रीनगर में भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आत्मघाती हमला कर उसने अपने खतरनाक इरादों की झलक दे दी थी। 23 अप्रैल 2000 को हुए एक हमले में एक आतंकी ने विस्फोटक पदार्थों से भरी कार सेना के मुख्यालय के दरवाजे से टकरा कर कश्मीर घाटी में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। दुनिया के सबसे कुख्यात आतंकी संगठनों में शुमार लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय लाहौर से 34 किलोमीटर दूर मुरीदके में है। यहां से निकलने वाले आतंकियों ने भारत के साथ ही दुनिया के कई देशों में कहर बरपाया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के दौरान इमरान खान ने आतंकियों पर चिंता तो जताई, लेकिन जब तक वे कट्टरपंथी मदरसों और समाज पर उनके जानलेवा प्रभाव को रोकने के लिए कड़े कदम नहीं उठाते तब तक पाकिस्तान से आतंक के ढांचे को खत्म करना मुश्किल होगा। अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के डायरेक्टर रहे और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा था कि अगर पाकिस्तान अपने देश में चरमपंथ की सुरक्षित पनाहगाहों पर कार्रवाई नहीं करेगा तो अमेरिका इस समस्या से अपने तरीके से निपटेगा। जाहिर है पाकिस्तान से आतंकवाद का ढांचा नष्ट क