Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला, जिसने हमाल को बना दिया टायपिस्ट, पढ़िए 25 साल क़े संघर्ष और जज्बे की कहानी

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला, जिसने हमाल को बना दिया टायपिस्ट, पढ़िए 25 साल क़े संघर्ष और जज्बे की कहानी

Supreme Court: बिलासपुर। याचिकाकर्ता धनीराम साहू की नियुक्ति हमाल के पद पर शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय कोनी बिलासपुर में 1988 में हुआ था। 1990 में हमाल के पद पर नियमितिकरण भी हो गया। इंजीनियरिंग कॉलेज कोनी बिलासपुर के प्राचार्य द्वारा वर्ष 1997 में टायपिस्ट के पद पर भर्ती चुतर्थ वर्ग कर्मचारी से करने के लिए विज्ञापन निकाला गया। हिन्दी एवं अंग्रेजी टाइपिंग परीक्षा पास होने के चलते उसने आवेदन दिया था।

भर्ती समिति के द्वारा परीक्षा आयोजन कर इंटरव्यू लेने के पश्चात उसका का नाम मेरिट में प्रथम होने पर टायपिस्ट के पद हेतु चयन किया गया। उसे वर्ष 1997 में टायपिस्ट के पद पर नियुक्ती दी गई। 22 जुलाई 1999 को उसकी नियुक्ति को गलत ठहराते हुए पुन हमाल के पद पर डिमोशन कर दिया। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को टायपिस्ट के पद पर नियुक्ति देने राज्य शासन को निर्देश दिया था। इसके लिए कोर्ट ने 10 दिन की मोहलत दी थी।

अवमानना याचिका से भी नहीं बनी बात

कोर्ट के निर्देश के बाद भी नियुक्ति नही दी गई तब याचिकाकर्ता ने न्यायालयीन आदेश की अवहेलना का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की थी। कोर्ट के आदेश के बाद इंजीनियरिंग कालेज प्रबंधन द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाने लगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिली राहत

याचिकाकर्ता ने अपने अधिवक्ता के जरिये सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर न्याय की गुहार लगाई। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए याचिकाकर्ता को टायपिस्ट के पद पर भाल करते हुए वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

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