छत्तीसगढ़ में बदल रही युवाओं की तस्वीर, मुख्यमंत्री विष्णुदेव की योजनाओं से हो रहे आत्मनिर्भर

रायपुर। छत्तीसगढ़ में युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है, इससे युवा आत्मनिर्भर हो रहे हैं। महासमुंद जिले में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से मदद लेकर सरायपाली के पदमलोचन बारिक हेयर ड्रेसिंग सेलून शुरू किया जो चल निकला है। वे न केवल आत्मनिर्भर हुए हैं बल्कि अन्य युवाओं को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।
सरायपाली के पदमलोचन बारिक ने बताया कि वे स्नातकोत्तर तक शिक्षित हैं उन्होंने स्वरोजगार के लिए छत्तीसगढ़ खादी और ग्रामोद्योग विभाग से संपर्क किया। उन्हें वहां प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की जानकारी मिली। इस योजना का लाभ लेकर उन्होंने हेयर ड्रेसिंग एवं सैलून व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया।
भारतीय स्टेट बैंक, सरायपाली शाखा से पदमलोचन बारिक को 3,68,400 रुपए की राशि मंजूर की गई, जिसमें से 25 प्रतिशत अनुदान के रूप में प्राप्त हुआ। इस राशि से उन्होंने आवश्यक उपकरण और सामग्रियां खरीदा और अपना हेयर ड्रेसर सैलून का व्यवसाय शुरू किया। इस योजना के माध्यम से न केवल उन्हें स्वरोजगार मिला, बल्कि अब वे हर महीने नियमित रूप से 30 से 35 हजार रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं और अपनी किश्तें भी समय पर चुका रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के तहत संचालित एक प्रमुख योजना है, जिसका उद्देश्य बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है, जिससे लोग अपने व्यवसाय की शुरुआत कर सकें।
मुर्गीपालन से आत्मनिर्भरता की मिसाल बने दीपक सिंह
महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत संचालित प्रोजेक्ट उन्नति ने मुंगेली जिले के पथरिया विकासखंड के ग्राम हथनीकला के दीपक सिंह के जीवन को नई दिशा दी है। यह योजना न केवल दीपक बल्कि अन्य ग्रामीणों के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो रही है।
प्रोजेक्ट उन्नति के तहत बकरी पालन, पशुपालन, कृषि सखी, पशु सखी और सूअर पालन जैसे विभिन्न स्वरोजगारों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे ग्रामीण आत्मनिर्भर बन सकें। दीपक सिंह, जो एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं, पहले पूरी तरह से कृषि और मनरेगा की मजदूरी पर निर्भर थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और संकल्प से इसे बदलने का निर्णय लिया।
जिला प्रशासन द्वारा प्रोजेक्ट उन्नति के अंतर्गत जब मुर्गी पालन प्रशिक्षण की पहल की गई, तो दीपक ने इसमें भाग लिया। उन्होंने ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, बिलासपुर में 10 दिनों का वैज्ञानिक पद्धति से मुर्गी पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस प्रशिक्षण के दौरान उन्हें व्यवसायिक मुर्गी पालन की तकनीकी जानकारी मिली। प्रशिक्षण के बाद दीपक ने अपनी बचत और मनरेगा से प्राप्त धनराशि का उपयोग कर 10 मुर्गियों से शुरुआत की। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी आमदनी बढ़ाई और अधिक मुर्गियाँ खरीदीं। उनकी मेहनत रंग लाई और उनका यह छोटा व्यवसाय अब एक सफल उद्यम में बदल चुका है। बढ़ती आय को देखते हुए दीपक ने 01 लाख रुपये की लागत से एक आधुनिक पोल्ट्री शेड का निर्माण किया, जिसमें अब 450 मुर्गियाँ हैं। इससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ी, बल्कि गाँव के अन्य लोगों को भी रोजगार के अवसर मिलने लगे। अब गाँव के लोग मुर्गियाँ खरीदने के लिए दूर शहर जाने के बजाय सीधे दीपक से ही खरीदते हैं, जिससे ग्रामीण समुदाय को भी लाभ मिल रहा है।
मुर्गीपालन से आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं ‘लखपति दीदी’ ज्योति राजपूत
मुंगेली विकासखंड के ग्राम चारभाठा की ज्योति राजपूत ने मेहनत और लगन से अपनी तकदीर बदली है। पारंपरिक कृषि पर निर्भर परिवार की आय सीमित थी, लेकिन ज्योति ने कुछ अलग करने की ठानी। मुर्गीपालन के व्यवसाय को अपनाकर उन्होंने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। आज वे प्रतिमाह एक से डेढ़ लाख रुपये तक की शुद्ध आमदनी अर्जित कर रही हैं, जिससे वे ‘लखपति दीदी’ के नाम से पहचानी जाने लगी हैं।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
ज्योति राजपूत की सफलता की राह आसान नहीं थी। शुरुआत में वे बिहान समूह से जुड़ीं और ऋण लेकर 50 मुर्गियों से अपना व्यवसाय शुरू किया। शुरुआती दौर में बाजार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जब पहली खेप की मुर्गियां बिक गईं, तो उन्होंने बैंक से दोबारा ऋण लिया और 300 मुर्गियों का पालन शुरू किया। पहले यह व्यवसाय अस्थायी शेड में संचालित हुआ, लेकिन आमदनी बढ़ने पर उन्होंने स्थायी संरचना का निर्माण किया। उनके परिवार ने भी इस कार्य में सहयोग दिया, जिससे व्यवसाय को मजबूती मिली।
आर्थिक सशक्तिकरण की ओर कदम
वर्तमान में ज्योति राजपूत 8,000 मुर्गियों के साथ-साथ बत्तख और देशी मुर्गियों का भी पालन कर रही हैं। उन्होंने हेचरी मशीन खरीदी है, जिससे वे प्रतिमाह 20,000 चूजों का विक्रय कर रही हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गई है। मुर्गीपालन से हुई आय का उपयोग ज्योति राजपूत अपने जीवन स्तर को सुधारने में कर रही हैं। उन्होंने पक्के घर के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया है और अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में शिक्षा दिला रही हैं। इसके साथ ही वे कृषि विभाग की चिराग योजना के तहत मछली पालन के लिए तालाब खुदवा रही हैं, जिससे उनकी आय के और अधिक स्रोत विकसित हो सकें।
सरकारी योजनाओं से मिली मजबूती
ज्योति राजपूत ने शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाकर अपने व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके इस सफर में विभागीय अधिकारियों और जिला प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की योजनाओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि सही मार्गदर्शन और सरकारी सहयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत
ज्योति राजपूत की सफलता उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि संकल्प मजबूत हो और परिश्रम किया जाए, तो कोई भी आर्थिक रूप से सशक्त हो सकता है। ‘लखपति दीदी’ ज्योति राजपूत न केवल खुद आत्मनिर्भर बनीं, बल्कि अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उनकी यह सफलता ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देने का एक बेहतरीन उदाहरण बन चुकी है।
शासकीय योजनाओं से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रही मजबूती
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की मंशानुरूप युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं। शासन की योजनाओं ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के नए अवसर प्रदान किए हैं। इन योजनाओं का लाभ उठाकर युवा न केवल अपना व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी है सीतापुर विकास खंड के ग्राम पंचायत उडुमकेला के निवासी दिनेश सिंह की, जिन्होंने मत्स्य पालन को अपनी आजीविका का साधन बनाकर सफलता की नई मिसाल पेश की है।
मत्स्य पालन बना रोजगार का जरिया
दिनेश सिंह ने एमए (राजनीति विज्ञान) तक पढ़ाई की है। पढ़ाई उपरांत उन्होंने स्वयं का व्यवसाय शुरू कर दूसरों को भी रोजगार देने की सोची। इसी दौरान उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की जानकारी मिली, जिसमें मत्स्य पालन के हेतु शासन की ओर से 40 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है। तो उन्होंने साल 2022 में उन्होंने अपनी एक हेक्टेयर जमीन पर तालाब निर्माण के लिए आवेदन किया। शासन की सहायता से उन्हें तालाब निर्माण के लिए 4.5 लाख रुपये मिले, जिसमें से उन्हें 2.80 लाख रुपये सब्सिडी के रूप में प्राप्त हुए।
सालाना 9 लाख रुपये की आमदनी
दिनेश सिंह ने तालाब में कुल 10000 नग फिंगरलिंग रोहू, कतला, मृगल, कॉमन कार्प, रुपचंदा का मत्स्य बीज संचयन किया। आज उनका व्यवसाय फल-फूल रहा है और प्रति वर्ष 5-6 टन मछली का उत्पादन करते है। जिसे थोक भाव में 150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक्री करने पर उन्हें सालाना लगभग 8 से 9 लाख रुपये की आय होती है। खर्च निकालने के बाद भी उन्हें 4 से 4.5 लाख रुपये की शुद्ध बचत हो रही है। इसके अलावा, उनके इस काम में 2-3 लोगों को स्थायी रोजगार भी मिला है। जिससे उनका परिवार चल रहा है। दिनेश सिंह की सफलता साबित करती है कि सरकारी योजनाओं का सही उपयोग करके युवा स्वावलंबी बन सकते हैं। उनकी मेहनत और लगन ने न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारी, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया है। शासन की ऐसी योजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और बेरोजगारी दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।