छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला…. राजनीतिक दल के नेताओं के लिए खतरे की घंटी

Chhattisgarh High Court बिलासपुर। पूर्व विधायक व राज्य अनुसूचित जनजाति विभाग के अध्यक्ष भानूप्रताप सिंह ने भाजपा सरकार द्वारा कार्यकाल से पहले पद से हटाए जाने के आदेश को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई।
जस्टिस गुरु ने अपने फैसले में लिखा है क राज्य सरकार के प्रसाद पर्यंत पद पाने वालों के लिए यह जरुरी नहीं है कि राज्य सरकार द्वारा हटाए जाने से पहले कोई कारण बताया जाए। सरकार चाहे तो किसी भी समय पद से हटा सकती है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ सिंगल बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट का यह फैसला AFR न्याय दृष्टांत बन गया है।
याचिकाकर्ता पूर्व विधायक भानू प्रताप सिंह ने अपनी याचिका में कहा था कि अनुसूचित जाति विकास विभाग ने 16 जुलाई 2021 को छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति की थी। इसके अलावा गणेश ध्रुव, अमृत टोप्पो व अर्चना पोर्ते को सदस्य के रूप में नामित किया गया था। विभाग द्वारा जारी आदेश में राज्य सरकार के प्रसाद पर्यंत तक पद में रहने का साफतौर पर उल्लेख किया गया था। याचिका के अनुसार राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद 15 दिसम्बर 2023 को तत्काल प्रभाव से उनके अलावा तीनों सदस्यों की नियुक्ति को समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया।
याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए सरकार के इस निर्णय को असंवैधानिक बताया है। मामले की सनुवाई के बाद जस्टिस गुरु ने अपने आदेश में लिखा है कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति राज्य शासन द्वारा की गई थी। पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया गया है।
इसमें सुनवाई का अवसर दिए जाने की बाध्यता नहीं है और ना ही प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का उल्लंघन का ही मामला बनता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास कोई संवैधानिक पद नहीं है। लिहाजा संवैधानिक सरंक्षण की आवश्यकता भी याचिकाकर्ताओं को नहीं है। इस पूरे मामले में अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई भी अपमानजनक नहीं है। कोर्ट ने जरुरी टिप्पणी के साथ याचिका को खारिज कर दिया है।