Video: पुलिस अधिकारी के मासूम बेटे में नक्सलियों के प्रति गुस्सा, ड्राइंग बनाकर बता रहा पुलिस उन्हें ऐसे मारेगी

Video: पुलिस अधिकारी के मासूम बेटे में नक्सलियों के प्रति गुस्सा, ड्राइंग बनाकर बता रहा पुलिस उन्हें ऐसे मारेगी

रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों का संघर्ष न केवल मुठभेड़ों और अभियानों तक सीमित है, बल्कि यह समाज की सोच बदलने और नई पीढ़ी को हिंसा के प्रति जागरूक करने का भी प्रयास है। इस प्रयास की एक प्रेरक मिसाल है छह वर्षीय ’कृतज्ञ चंद्राकर’, जिसने अपनी मासूम लेकिन गहरी समझ से इस संघर्ष को एक नई दिशा दी है।

’कृतज्ञ, डीएसपी ’’कृष्ण कुमार चंद्राकर’ का पुत्र है, जिन्होंने 2.5 वर्षों तक दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सेवा दी। वहां बिताए समय ने कृतज्ञ को पुलिस के अभियानों और जवानों की चुनौतीपूर्ण दिनचर्या को बेहद करीब से समझने का अवसर दिया। कृतज्ञ ने दंतेवाड़ा में ’डीआरजी’ जवानों को जंगल में गश्त करते हुए, एंटी-लैंड माइन वाहनों के उपयोग और हेलीकॉप्टर मूवमेंट जैसे अभियानों को नजदीक से देखा।

कृतज्ञ की समझदारी का सबसे उल्लेखनीय उदाहरण उसकी एक ड्राइंग है, जिसमें उसने नक्सलियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ को चित्रित किया। इस ड्राइंग में कृतज्ञ ने साफ़ तौर पर दिखाया कि पहले नक्सली फायर कर रहे हैं, जबकि पुलिस आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई करती है। यह छोटे से बच्चे की गहरी समझ को दर्शाता है कि पुलिस कभी भी गश्त के दौरान पहले फायर नहीं करती। यह बात कृतज्ञ ने न केवल देखा, बल्कि अपने मासूम शब्दों और चित्रों के माध्यम से व्यक्त भी किया।

कृतज्ञ की माँ, ’संगीता चंद्राकर’, जो एक लेक्चरर हैं, ने उसे शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों और समाज के प्रति जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया है। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने बेटे को आत्मनिर्भर और समाज के प्रति जागरूक बनाया। कृतज्ञ न केवल मानसिक रूप से परिपक्व है, बल्कि शारीरिक रूप से भी सक्रिय है। वह नियमित रूप से दौड़, जिम्नास्टिक और पुलिस ट्रेनिंग जैसी गतिविधियों में हिस्सा लेता है।

छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस प्रशासन द्वारा नक्सलवाद के उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे पुनर्वास कार्यक्रम, बुनियादी ढांचे का विकास और आधुनिक तकनीक का उपयोग समाज में स्थायी बदलाव ला रहे हैं। डीएसपी ’कृष्ण कुमार चंद्राकर, जो वर्तमान में ’’कबीरधाम’ में नक्सल ऑपरेशन के पद पर पदस्थ हैं, जैसे अधिकारी इन प्रयासों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित कर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थिरता और विश्वास बहाल कर रहे हैं।

कृतज्ञ की मासूम सोच यह संदेश देती है कि नक्सलवाद के खिलाफ संघर्ष केवल हथियारों से नहीं लड़ा जा सकता। इसके लिए समाज के हर वर्ग को जागरूक और प्रेरित करना आवश्यक है। कृतज्ञ जैसे बच्चे इस बदलाव के प्रतीक हैं, जो उम्मीद और प्रेरणा की नई कहानी लिख रहे हैं।

छत्तीसगढ़ पुलिस और शासन के सामूहिक प्रयास न केवल वर्तमान में शांति स्थापित कर रहे हैं, बल्कि एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो नक्सलवाद और हिंसा के खिलाफ खड़ी हो सके। कृतज्ञ जैसे बच्चों की मासूमियत और समझ यह प्रमाण है कि शिक्षा, जागरूकता और सुरक्षा बलों की प्रतिबद्धता से एक उज्ज्वल भविष्य की नींव रखी जा सकती है।

छत्तीसगढ़ अब न केवल शांति की ओर बढ़ रहा है, बल्कि विकास और सामाजिक सुधार की नई ऊँचाइयों को भी छूने के लिए तैयार है। कृतज्ञ की मासूमियत से झलकती यह सोच, आने वाले कल के लिए उम्मीद और प्रेरणा का प्रतीक है।

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share