Chhattisgarh School Education: छत्तीसगढ़ में 300 स्कूल शिक्षक विहीन, 5500 सिंगल टीचर वाले, फिर 5वीं, 8वीं में फेल करना कैसे न्यायोचित?…
Chhattisgarh School Education: रायपुर। बेसिक शिक्षा में क्वालिटी जरूरी हैं। क्योंकि, आगे की पढ़ाई के लिए बुनियाद मजबूत होना आवश्यक है। इसीलिए भारत सरकार ने पांचवी, आठवीं बोर्ड परीक्षा में अब जनरल प्रमोशन का नियम समाप्त कर दिया है।
भारत सरकार ने राजपत्र में आदेश प्रकाशित कराया है। उसके मुतबिक पांचवी, आठवीं में पहली बार फेल होने पर एक चांस और दिया जाएगा। दूसरी बार अगर फेल हुए तो फिर ड्रॉप लेकर उसी कक्षा में फिर से पढ़ाई करनी होगी।
भारत सरकार ने पांचवीं, आठवीं के नए परीक्षा पैटर्न को अपने स्कूलों याने केंद्रीय स्कूलों और नवोदय विद्यालयों में लागू कर दिया है। राज्यों के लिए वहीं की सरकारों पर छोड़ दिया है।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो विष्णुदेव साय सरकार ने अच्छी पहल करते हुए पहले से पांचवी, आठवीं में बोर्ड परीक्षा कर दिया है। यहां पहली बार में फेल होने पर दूसरी परीक्षा का अवसर दिया जाएगा मगर इसमें फेल नहीं किया जाएगा। कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि अगर दो परीक्षा लेने के बाद भी किसी को अनुतीर्ण नहीं किया जाएगा तो फिर परीक्षा लेने का कोई मतलब नहीं। कोई भी छात्र फेल होने के डर से ही पढाई करता है। ऐसे में, जाहिर सी बात है कि सरकार जिस क्वालिटी एजुकेशन के लिए पांचवीं, आठवीं बोर्ड परीक्षा का नियम बनाई है, उसका कोई रिजल्ट नहीं मिलेगा। क्योंकि, फेल होने की आशंका नहीं रहेगी तो फिर बच्चे पढ़ाई क्यों करेंगे?
विद्यार्थियों के साथ अन्याय
भारत सरकार का पांचची, आठवीं का नया परीक्षा पैटर्न विकसित राज्यों के लिए सही हो सकता है। मगर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां शिक्ष्कों के सैकड़ों पद खाली हैं, वहां कैसे इसे जायज ठहराया जा सकता है। याने स्कूल में शिक्षक नहीं देंगे और उम्मीद करेंगे कि विद्यार्थी पास हो जाए, ये संभव है क्या?
297 शिक्षक विहीन, 5484 स्कूलों एक शिक्षक के भरोस
छत्तीसगढ़ में 5484 स्कूल सिंगल टीचर वाले हैं और 297 शिक्षक विहीन। याने एक भी शिक्षक नहीं। आश्चर्यजनक यह है कि 231 मीडिल स्कूल सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे तो 45 मीडिल स्कूलों में एक भी टीचर नहीं। अब जरा समझिए कि मीडिल स्कूल में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। वहां अगर एक शिक्षक या जीरो की स्थिति रहेगी तो प्रदेश के नौनिहालों का क्या होगा? प्रायमरी स्कूलों का और बुरा हाल है। छत्तीसगढ़ के 5484 प्रायमरी स्कूलों में एक शिक्षक हैं तो 152 स्कूलों में एक भी टीचर नहीं।
7300 सरप्लस शिक्षक
छत्तीसगढ़ के सिस्टम की विडंबना है कि सैकड़ों स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं और साढ़े पांच हजार स्कूल सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे हैं। उधर, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और रायगढ़ जैसे बड़े शहरों में सबसे अधिक अतिशेष शिक्षक हैं। इन शहरों के कई स्कूलों में 10 बच्चे भी नहीं है मगर उसके लिए पांच-पांच, सात-सात शिक्षकों ने पैसे और एप्रोच के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली है। मीडिल स्कूलों में दुर्ग में 303, बिलासपुर में 211, रायपुर 250, जशपुर 246, सरगुजा 285, कांकेर 242, बस्तर 303 शिक्षके अतिशेष हैं तो प्रायमरी में रायपुर जिले में 424, बिलासपुर में 264, बलौदा बाजार में 211, सूरजपुर में 236, रायगढ़ में 217, बस्तर में 425, कांकेर में 318, कोरबा में 325, बलरामपुर में 251, बीजापुर में 272 शिक्षक अतिशेष हैं। ये सभी सालों से उसी स्कूल में जमे हुए हैं। कुल मिलाकर शहरों के स्कूलों में 7300 अतिशेष शिक्षक हैं। इन शिक्षकों ने स्कूलों में स्वीकृत पद के बराबर शिक्षक होने के बाद भी एप्रोच या पैसा के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली। स्कूल शिक्षा विभाग ने जरूरत नहीं होने के बाद भी शिक्षकों की पोस्टिंग कर दी।
13 हजार शिक्षक फोकट में वेतन पा रहे
प्रारंभिक तौर पर शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए प्रदेश में पहली बार स्कूलों का भी युक्तिकरण करने का फैसला लिया गया था। जिन स्कूलों में 10 से कम बच्चे हैं, उन्हें पास के स्कूलों में मर्ज किया जाता। छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जिसमें दो से पांच, सात बच्चे हैं। ऐसे 100 से अधिक स्कूलों में दो से तीन शिक्षक हैं। इनमें अधिकांश लोगों ने सिफारिश और पैसे के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली है। सरकार के खजाने पर ये बड़़ा बोझ है। चार-पांच बच्चों पर तीन-तीन शिक्षक। डेढ़-दो लाख रुपए तो उनके वेतन पर ही सरकार खर्च कर रही है। और पढ़ा कितने बच्चों को रहे हैं..तीन से लेकर पांच-सात को। स्कूलों के युक्तियुक्तकरण से करीब साढ़े पांच हजार शिक्षक अतिशेष निकलेंगे। और 7300 शिक्षक स्कूलों में सरप्लस है। याने कुल मिलाकर 13 हजार शिक्षक अतिशेष होंगे। इन्हें हर महीने 82 करोड़ रुपए बिना काम का वेतन दिया जा रहा है।